• "न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते" - ज्ञान के समान पावन इस विश्व में अन्य कोई वस्तु नहीं है।
    "विद्ययाऽमृतमश्नुते" - विद्या या ज्ञानोपासना से ही साधक अमरत्व को प्राप्त करता है।
    A Trusted Resource for Authoritative Research Review
  • Open Access
    Submit Manuscript/Paper
    Shodhshauryam Calls Volunteers Interested to Contribute Towards the Scientific Research and Development

    Get Started Now!

Important Dates 30-March-2024 SHISRRJ invites research paper from various Computer Science, Engineering and Information Technology disciplines for March-April-2024

or
Submit your paper to : editor@shisrrj.com, shisrrj@gmail.com

Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ) is peer-reviewed, online international journal published bimonthly by TechnoScience Academy (The International open Access Publisher) SHISRRJ is a highly-selective journal, covering topics that appeal to a broad readership of various branches of Applied Science and Technology and related fields. The Journal has many benefits all geared toward strengthening research skills and advancing academic careers.  Journal publications are a vital part of academic career advancement. To maintain a high-quality journal, manuscripts that appear in the SHISRRJ Articles section have been subjected to a rigorous review process. This includes blind reviews by one or more members of the international editorial review board, followed by a detailed review by the SHISRRJ editors.
[ DOI : https://doi.org/10.32628/SHISRRJ ]

शोध मानव की सहज प्रवृत्ति है। मनुष्य विवेकशील है। उसकी शारीरिक भूख से अधिक मन की भूख होती है। यह मन मनुष्य की सबसे बड़ी निधि है। मध्यकालीन सन्त कबीरदास ने स्पष्टतः कहा है–

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।

पारब्रह्म  को पाइये, मन की ही परतीत।।

मैत्रायण्युपनिषद् में भी इसी तथ्य को उजागर किया गया है– ‘‘मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः‘ यही मन मनुष्य को शोध की आेर भी प्रवृत्त करता है। वस्तुतः शोध का सम्बन्ध विद्या एवं ज्ञान से है। विद्यासम्पन्न, ज्ञानसम्पन्न मनुष्य ही अनुसन्धान की ओर उन्मुख होता है। शोध–पत्र का अर्थ है विद्या अथवा ज्ञान के रहस्यमय अथवा अज्ञात आवरणों का उन्मीलन (Opening of the new horizons of knowledge) हमारे प्राचीन आचार्यों ने ज्ञान की सम्पूर्ण प्रक्रिया को तीन स्तरों पर व्यवस्थित किया है– शोध‚बोध तथा प्रबोध– ʺआदौ शोधस्ततो बोधः प्रबोधश्चाप्यनन्तरम्ʺ इस प्रकार हम शोध को ज्ञान की पिपासा (Thirst of knowledge) भी कह सकते हैं। श्रीहर्ष ने भी विद्या (ज्ञान) की चार अवस्थाओं का उल्लेख किया है–

अधीतिबोधाचरणप्रचारणैर्दशाश्चातस्रः प्रणयन्नुपाधिभि:।

चतुर्दशत्वं कृतवान् कुतः स्वयं न वेदि्म विद्यासु चतुर्दशस्वयम्।।

शोध की प्रक्रिया में भी प्रायः ये चार ही स्थितियाँ आती हैं–अधीति (Perusal or study), बोध (Digestion or experience), आचरण (Application) तथा प्रचारण (Teaching or deliverance)| अाधुनिक सन्दर्भ में शोध का अर्थ नवीन तथ्यों की खोज अथवा प्राप्त तथ्यों की नये आलोक में समीक्षा, उसका खण्डन–मण्डन आदि है। इसीलिये आधुनिक शोध को परीक्षण (Examination) अथवा मूल्यांकन (Assessment) भी कहते हैं। शोधकार्य का प्राणतत्त्व है–नये तथ्यों की खोज। इस कार्य में शोधकर्ता की आलोचनात्मक प्रतिभा तथा उसके ठोस निष्कर्षों का सर्वाधिक महत्त्व होता है। साहित्यिक प्रस्तुति भी शोधकार्य की विशेषता मानी जाती है। अनुसन्धान की आधुनिक परिभाषा इस प्रकार है–

"अनुसन्धान वह है जो अवलोकित तथ्यों का संभावित वर्गीकरण सामान्यीकरण और सत्यापन करते हुए पर्याप्त रूप से वस्तुिवषयक और व्यवस्थित हो।" लुण्डवर्ग

अनुसंधान एक बौद्धिक प्रक्रिया है जिसमें किसी समस्या का निर्धारण कर उस समस्या को यत्नपूर्वक, वैज्ञानिक पद्धति से, निष्पक्ष रूप से, तटस्थ भाव से हल करने का प्रयत्न किया जाता है तथा प्राप्त निष्कर्षों, परिणामों की समीक्षा करना तथा प्रमाणों एवं तर्कों के आधार पर नवीन परिणामों, सिद्धान्तों को प्रतिष्ठित करना अनुसन्धानकार्य के अन्तर्गत आता है। भारतीय शोध–पद्धति से विचार किया जाय तो शोध को दो भागों में बांट सकते हैं–साहित्यिक एवं शास्त्रीय (Literary & Technical)। साहित्यिक शोध के अन्तर्गत साहित्य, धर्म, संस्कृति तथा विश्वमानवता आदि समस्त विषय अन्तर्भूत हो सकते हैं। वस्तुतः शास्त्रीय शोध के ही अन्तर्गत वे सारे शोध आ जाते हैं जिन्हें हम वैज्ञानिक शोध की संज्ञा देते हैं। आज हम अत्यन्त वैज्ञानिक समय में जीवनयापन कर रहे हैं। मानव को चाँद पर पहुँचे  हुए 46 वर्ष हो चुके हैं। छापेखाने की खोज को लगभग 575 साल और रेडियो प्रसारण भी अतीत हो चुका है। पहले दूरदर्शन अब इंटरनेट और ई–प्रकाशन के युग में भी शोध–पत्रिकाओं का महत्त्व कम नहीं हुआ बल्कि पठन–पाठन की ओर देश और विदेश के विद्वानों का रूझान बढ़ता ही दिख रहा है। इन्टरनेट तथा अन्य संचार माध्यमों के द्वारा संसार भर के लेखकों‚ पाठकों और विशेषज्ञों को एक दूसरे के निकट आने का अवसर मिलता है। यतोहि विशिष्टकोटिक आश्रय काे प्राप्त करके ही गुणवानों का गुण वैशिष्ट्य को प्राप्त होता है–"प्राप्यते गुणवतापि गुणानां व्यक्तमाश्रयवशेन विशेषः"।  आश्चर्य है कि लेखकों और पाठकों के निरंतर वृद्धि होते हुये और अभिव्यक्ति के नित नये साधनों के बावजूद आज हिन्दी और संस्कृत के क्षेत्र में अच्छी पठन सामग्री में कमी आ रही है। इसी कमी को दूर करने के लिए "शोधशौर्यम्" पत्रिका का प्रकाशन किया जा रहा है–

पात्रविशेषे न्यस्तं गुणान्तरं व्रजति शिल्पमाधातुः।

जलमिव समुद्रशुक्तौ मुक्ताफलतां पयोदस्य।। मालविकाग्निमित्रम्-9.6

महाकवि भवभूति भी विद्यापात्रता का ही समर्थन करते हुए कहते हैं कि मणि ही प्रतिबिम्ब ग्रहण करने में समर्थ होता है मिट्टी का ढेला नहीं–"प्रभवति शुचिर्विम्बग्राहे मणिर्न मृदां चयः"।। अनुसन्धानात्मक ज्ञान की सफलता निर्भर करती है सम्पादक की पात्रता पर और उसकी पात्रता है– उसकी सांस्कारिक प्रतिभा, बहुश्रुतता तथा उसका परिश्रम, अध्यवसाय।

"शोधशौर्यम्" पत्रिका साहित्यिक रस विलास और दार्शनिक चिन्तन की भाव–भूमि, विज्ञान तथा ललित कलाओं का अनोखा तीर्थ है। जहाँ सहृदयी–साहित्यिक एवं चिन्तक मनीषी समान रूप से आनन्दानुभूति प्राप्त कर सकते हैं। यह पत्रिका हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी भाषा के नित्य नूतन प्रयोग से भरा हुआ है। यह भाषा के क्षेत्र में एक अनुपम वाटिका है, जो अनुसन्धाताओं का मन हठात अपनी ओर खींच लेता है। अध्येताओं, शोधप्रज्ञों, लेखकों एवं चिन्तकों के ज्ञान सम्पदा को सुरक्ष्‍िात–संरक्षित, विकसित एवं परिमार्जित करना ही इस पत्रिका का उद्देश्य है। दीपक चाहे मिट्टी का हो, चाहें सोने का या चाँदी का, मूल्य उसका नहीं उसके लौ (प्रकाश) का होता है। "शोधशौर्यम्" पत्रिका का प्रकाशन उसी लौ को अनवरत जलाये रखने के लिए की गई है। इस पत्रिका के माध्यम से रचनात्मक प्रतिभा एवं सृजनात्मक शक्ति काे बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है। उच्चस्तरीय पत्रकारिता की परम्परा को जीवित रखने के इस नये प्रयास को आपकी सेवा में समर्पित कर रहे हैं। आशा है आपको यह पत्रिका पसन्द आयेगी। अध्येताओं, शोधप्रज्ञों, लेखकों एवं चिन्तकों से नम्र निवेदन है कि अपनी प्रतिक्रिया से हमें अवगत कराते हुए हमारा उत्साहवर्धन करें और शोधपत्रिका की कमियों के बारे में भी हमें बताते रहें जिससे हमारा कार्य सार्थक हो।

"शोधशौर्यम्" पत्रिका में कृपया एकपक्षीय‚ अतिवादी रचनायें न भेजें। किसी राजनीतिक विचार धारा के प्रचार, हिंसक गतिविधि या किसी भी प्रकार की घृणा या द्वेष की अभिव्यक्ति के लिए "शोधशौर्यम्" पत्रिका में कोई स्थान नहीं है। चाहे वे किसी भी वर्ग, जाति, धर्म, लिंग, भाषा या राष्ट्रियता के प्रति हो। घृणा, द्वेष, हिंसा, प्रतिहिंसा का समर्थन समाज और राष्ट्र के लिए हानिप्रद तो है ही पर यह अनैतिक और अवैध भी है। इसे रोकने में ही हमारा हित है।

यह पत्रिका हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी तथा अन्य विषयों के पाठकों द्वारा पढी़ जाती है। अतः शोध–पत्र भेजते समय भाषा की शालीनता का विशेष ध्यान रखने का अनुरोध है। इस पत्रिका के लिए स्वरचित, मौलिक व अप्रकाशित शोध–पत्रकोयूनिकोड फॉण्ट में टंकित कराकर वर्ड फाइल ईमेल (shodhshauryam@gmail.com) पर भेजें। शोध–पत्र भेजने से पहले उसे जॉच कर त्रुटिनिवारण कर लिया जाय जिससे सम्पादक मण्डल का समय व्यर्थ नष्ट न हो‚ सामान्य त्रुटियों के निवारण के लिए हमारा सम्पादक मण्डल है। शोधशौर्यम् में प्रकाशन हेतु प्रेिषत शोध–पत्र किसी अन्य मुद्रित या अन्तर्जालीय प्रकाशन हेतु न भेजी गई हो और न ही किसी ब्लॉग या सोशल मीडिया, फेसबुकादि से ली गई हो। "शोधशौर्यम्" में एक बार अस्वीकृत हो चुका शोध–पत्र को दोबारा न भेजें। "शोधशौर्यम्" में प्रकाशित सभी लेखों के सर्वाधिकार सम्बन्धित लेखक तथा प्रकाशक के पास सुरक्षित है। अाधिकारिक स्वीकृति के बिना इनके पूर्ण या आंशिक पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। "शोधशौर्यम्" पूर्णतः अव्यावसायिक पत्रिका है। इसमें पेपर प्रकाशित करने के लिए मानदेय या धनरािश भुगतान का प्रावधान नहीं है।

Paper Template

Translate your paper in this format and send to editor@shisrrj.com or submit Online through ejManager

Copyright Form

Download this form and send to editor@shisrrj.com on/before acceptance

Cover Page

Download

Porto

SHISRRJ Xplore

Search and Download Articles from our database

E-ISSN : 2581-6306
Current Publisher : Technoscience Academy More >>
New Publisher : Shauryam Research Institute More >>
Publication Frequency: Bimonthly
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Type: Academic/Scholarly Journal
Starting Year : 2018
Language : * Multiple Languages


Publication Process

Submit Article

By Author

Review Process

By Journal

Publication

By Publisher

Accessible On Internet

Search By

Author Name, Title, Paper Content