रामायण का आदिकाव्यत्व एवं उसका सांस्कृतिक तथा साहित्यिक महत्त्व

Authors(1) :-डॉ. दिलीप कुमार

रामायण को परवर्ती साहित्य का आधार कहा जा सकता है क्योंकि परवर्ती साहित्य को इसके द्वारा भाव, भाषा और शैली का निर्देश मिला है। माधुर्यमयी उक्तियों का आरम्भ रामायण में ही संस्कृत साहित्य में हुआ है। रामायण की भाषा सुन्दर, ललित, प्रांजल, प्रवाह-पूर्ण तथा परिष्कारयुक्त है।

Authors and Affiliations

डॉ. दिलीप कुमार
पूर्व शोध छात्र, संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश।

रामायण, साहित्यय, भाषा, भाव, शैली सांस्कृतिक।

  1. श्लोकत्वमापद्यत यस्य शोकः, रघुवंश 14/70
  2. उत्तररामचरित 2/5 के बाद आत्रेयी का कथन
  3. डाॅ0 कलिपदेव द्विवेदी-संस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास, पृ0 111
  4. रामायण 1/1/2-4
  5. वही, 1/1/5 (उत्तरार्ध)
  6. रामायण चम्पू 1/8
  7. रामायण 1/2/37
  8. रामायण 2/17/14
  9. रामायण 2/69/1
  10. रामायण 6/111/100
  11. रामायण 5/5/4-7
  12. रामायण 4/27/28

Publication Details

Published in : Volume 6 | Issue 2 | March-April 2023
Date of Publication : 2023-03-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 40-42
Manuscript Number : SHISRRJ122566
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डॉ. दिलीप कुमार , "रामायण का आदिकाव्यत्व एवं उसका सांस्कृतिक तथा साहित्यिक महत्त्व ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 6, Issue 2, pp.40-42, March-April.2023
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ122566

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