भारतीय आस्तिक संप्रदाय में चेतना का विचार

Authors(1) :-डॉ. ज्योति कुमारी

मनुष्य दो तत्व के संयोग से बना है- शरीर और आत्मा| शरीर पांच भौतिक-तत्व पृथ्वी, जल, अग्नि ,वायु के निश्चित अनुपात में मिश्रण का परिणाम है जबकि आत्मा शुद्ध चैतन्य है| चेतना मनुष्य को सृष्टि में श्रेष्ठतम होने का दर्जा प्रदान करता है| चेतना के कारण ही मनुष्य सृष्टि का हिस्सा होकर भी उसे परे जाकर यह जानने के लिए प्रयत्नशील रहता है कि विश्व की सृष्टि किसने और क्यों की ? साथ ही वह अपने आत्म-विकास एवं सृष्टि में आने के प्रयोजन को जानना चाहता है| चेतना शब्द का प्रयोग दो अर्थों में होता है –पहले अर्थ में चेतना वह जीवन दयानी शक्ति है जो सभी चेतन वस्तुओं में पाई जाती है| इसके द्वारा ही भौतिक शरीर गतिमान होती है| इसे ही आत्मा या पुरुष आदि कहा जाता है| चेतना का दूसरा अर्थ है सोचने समझने एवं तर्क करने की शक्ति जो मनुष्य को ईश्वर के द्वारा प्राप्त एक अमूल्य वरदान है| इसी के आधार पर वह स्वयं को एवं विश्व को जानने की कोशिश करता है एवं दुख रुपी संसार से मुक्ति प्राप्त करना चाहता है| भारतीय दर्शन का आधार स्तंभ वेद में सर्वप्रथम चेतना शब्द का उल्लेख मिलता है| वेद में चेतना को मन की संज्ञा से विभूषित किया गया है| भारतीय आस्तिक दर्शन में आत्मा का अर्थ जीवात्मा या शरीर युक्त आत्मा से है| आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप में यहां शुद्ध चैतन्य है| यह शरीर, इंद्रिय ,मन, बुद्धि और अहंकार से भिन्न है| आस्तिक दर्शन में जहां कुछ दार्शनिक चेतना को आत्मा का आकस्मिक गुण मानते है वहीं कुछ दार्शनिकों ने चेतना को आत्मा का स्वाभाविक गुण माना है| आकस्मिक गुण मानने वाले दार्शनिकों के अनुसार चेतन की उत्पत्ति आत्मा में तब होती है जब इसका संबंध इंद्रिय मन और शरीर के द्वाराबाहर जगत से होता है| इसके विपरीत कुछ दार्शनिकों ने आत्मा का स्वभाव ही चेतनायुक्त माना है| उनके अनुसार आत्मा की तीन अवस्था होती है- जाग्रत ,स्वप्न और सुषुप्ति| इन तीनों ही अवस्थाओं में आत्मा चेतना से युक्त रहते हैं| उपनिषद में भी आत्मा की चार अवस्थाओं का वर्णन है जिसकी तुलना ब्रह्मा के स्वरूप से की गई है| यहां भी आत्मा को स्वभावतः चेतनायुक्त माना गया है| यह शाश्वत और अपरिवर्तनशील है| यह न जन्म लेती है न मरती है| जन्म और मृत्यु शरीर का होता है ,आत्मा का नहीं| अपने मूल रूप में यह नित्य एवं चेतनायुक्त है| इसमें कोई भी भौतिक या मानसिक गुण नहीं है| आत्मा शारीरिक और मानसिक परिवर्तनों का साक्षी है लेकिन वह स्वयं इससे पृथक है|

Authors and Affiliations

डॉ. ज्योति कुमारी
सहायक प्राध्यापिका, दर्शन-शास्त्र विभाग, जी.एस.सी.डब्ल्यू. जमशेदपुर, कोल्हन विश्वविद्यालय, चाईबासा, झारखण्ड।

आस्तिक संप्रदाय, चेतना की उत्पत्ति, चेतना का स्वरुप, चेतना की अवस्थाएं, मुक्ति।

  1. 1 .सक्सेना ,श्री कृष्णा – भारतीय दर्शन में चेतना का स्वरुप, चौखम्भा विद्याभवन वाराणसी
  2. 2 .सिद्धालंकार सत्यव्रत- ऐकदाशोपनिषद विजय कृष्णा लखन पल्ली एवं विद्या विहार
  3. 3 रानाडे रामचंद्र – उपनिषद दर्शन का रचनात्मक सर्वेक्षण, राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी
  4. 4 विश्व वन्धु – वेद्शास्त्र संग्रह, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली
  5. ऋग्वेद
  6. सिन्हा, हरेन्द्र प्रसाद – भारतीय दर्शन की रुपरेखा

Publication Details

Published in : Volume 7 | Issue 5 | September-October 2024
Date of Publication : 2024-10-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 88-92
Manuscript Number : SHISRRJ124780
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डॉ. ज्योति कुमारी, "भारतीय आस्तिक संप्रदाय में चेतना का विचार ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 7, Issue 5, pp.88-92, September-October.2024
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ124780

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