Manuscript Number : SHISRRJ181421
श्रीमद्भगवद्गीता के आलोक में धर्म
Authors(1) :-डाॅ0 ज्योति कपूर श्रीमद्भगवद्गीता एक जीवन्त शास्त्र है। वह हमें जीवन जीने की कला सिखाती है। देश, काल भाषा, सम्प्रदाय एवं क्षेत्र से न बँधी हुई सार्वजनीन, सार्वकालिक, कालजयी कृति ने सम्पूर्ण मानवजाति के लिये जीवन एवं कर्म सूत्र प्रदान किये। से उपादेय है जो सब प्राणियों के कल्याण में अपना जीवन लगाये, वह भगवान को अधिक प्रिय है। मानवी-सेवा मनुष्य का सबसे बड़ा मानवत्व है और दैवी-प्रकाश के उत्पादन का साधन है। यदि मनुष्य भगवत्व प्राप्ति करना चाहे तो उसे निर्धन, पतित या निर्बलकाय और श्रान्तात्मा मनुष्य की सेवा को ही लक्ष्य प्राप्ति का साधन बनना होगा। इसी मानव-धर्म का गीता में स्थान-स्थान पर उल्लेख है।
डाॅ0 ज्योति कपूर श्रीमद्भगवद्गीता, धर्म, मानव-धर्म, सार्वजनीन, सार्वकालिक, कालजयी, भगवान् श्रीकृष्ण। Publication Details Published in : Volume 1 | Issue 4 | November-December 2018 Article Preview
एसोसियेट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, सदनलाल सांवलदास खन्ना महिला महाविद्यालय, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत।
Date of Publication : 2018-12-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 91-95
Manuscript Number : SHISRRJ181421
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ181421