श्रीमद्भगवद्गीता के आलोक में धर्म

Authors(1) :-डाॅ0 ज्योति कपूर

श्रीमद्भगवद्गीता एक जीवन्त शास्त्र है। वह हमें जीवन जीने की कला सिखाती है। देश, काल भाषा, सम्प्रदाय एवं क्षेत्र से न बँधी हुई सार्वजनीन, सार्वकालिक, कालजयी कृति ने सम्पूर्ण मानवजाति के लिये जीवन एवं कर्म सूत्र प्रदान किये। से उपादेय है जो सब प्राणियों के कल्याण में अपना जीवन लगाये, वह भगवान को अधिक प्रिय है। मानवी-सेवा मनुष्य का सबसे बड़ा मानवत्व है और दैवी-प्रकाश के उत्पादन का साधन है। यदि मनुष्य भगवत्व प्राप्ति करना चाहे तो उसे निर्धन, पतित या निर्बलकाय और श्रान्तात्मा मनुष्य की सेवा को ही लक्ष्य प्राप्ति का साधन बनना होगा। इसी मानव-धर्म का गीता में स्थान-स्थान पर उल्लेख है।

Authors and Affiliations

डाॅ0 ज्योति कपूर
एसोसियेट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, सदनलाल सांवलदास खन्ना महिला महाविद्यालय, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत।

श्रीमद्भगवद्गीता, धर्म, मानव-धर्म, सार्वजनीन, सार्वकालिक, कालजयी, भगवान् श्रीकृष्ण।

  1. मनुस्मृति-षष्ठ अध्याय, 92 श्लोक, डाॅ0 राम निहोर पाण्डे, प्राच्य विद्या संस्थान, इलाहाबाद।
  2. महाभारत - शान्तिपर्व, 108.11
  3. मनुस्मृति- 1/108
  4. कणाद् - वैशेषिक - 1.12
  5. श्रीमद्भगवद्गीता- 3, 20, श्लोक
  6. गौतम धर्मसूत्र - 1, 1.2
  7. त्रयोधर्मस्कन्धा यशोऽध्ययनं दानमिति प्रथमः, तप एवेति द्वितीयः ब्रह्मचर्याचार्यकुलवासी तृतीयः। छान्दोग्य उपनिषद, 2.3
  8. तैत्तिरीय उपनिषद - 1.11
  9. श्रीमद्भगवद्गीता- 18वाँ अध्याय, 70 श्लोक
  10. श्रीमद्भगवद्गीता- 2वाँ अध्याय, 7वाँ श्लोक
  11. अद्वेष्टा सर्वभूतानाम मैत्रः करूण एव च। निर्ममो निरहंकारः समदुःखसुख क्षमी।।
  12. तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढ़निश्चयः। मध्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे पियः।। श्रीमद्भगवद्गीता-12 अध्याय, 13, 14 श्लोक
  13. श्रीमद्भगवद्गीता - 12.20
  14. श्रीमद्भगवद्गीता - (द्वितीय अध्याय- 16वें श्लोक से 29वें श्लोक तक)
  15. नेहाभिक्रमनाशेऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते।  स्वल्पमत्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्।। श्रीमद्भगवद्गीता- 0 श्लोक।
  16. श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्। श्रीमद्भगवद्गीता 18-47 श्लोक
  17. वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।  श्रीमद्भगवद्गीता 3-35 श्लोक
  18. श्रीमद्भगवद्गीता - 2-41
  19. श्रीमद्भगवद्गीता- 17-14 श्लोक
  20. श्रीमद्भगवद्गीता- 17-15वां श्लोक
  21. मनः प्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः।
  22. भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते। श्रीमद्भगवद्गीता - 17 अध्याय, 16वां श्लोक।
  23. श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 5, 25वां श्लोक।

Publication Details

Published in : Volume 1 | Issue 4 | November-December 2018
Date of Publication : 2018-12-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 91-95
Manuscript Number : SHISRRJ181421
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ0 ज्योति कपूर, "श्रीमद्भगवद्गीता के आलोक में धर्म", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 1, Issue 4, pp.91-95, November-December.2018
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ181421

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