Manuscript Number : SHISRRJ1818933
वैदिक साहित्य में यथार्थ
Authors(1) :-डाॅ0 अशोक कुमार वर्मा पाश्चात्य आलोचकों का यह मत कि ‘भारतीय साहित्य में यथार्थ तत्त्व नहीं के बराबर है स्वतः ही खण्डित हो जाता है। वैदिक कवियों ने प्रकृति से एकात्म होकर उसके गीत अवश्य गाये पर साथ ही कठोर यथार्थ जीवन की समस्याओं की उन्होंने तनिक भी उपेक्षा नहीं की। संस्कृत साहित्य में यथार्थ का जो विकास हुआ है, उसकी पृष्ठभूमि वैदिक साहित्य में प्राप्त होता है। वैदिक साहित्य में यथार्थ धर्म सर्वदा जुड़ा हुआ है, वह नैतिकता तथा मूल्य सापेक्षता को दृष्टि में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
डाॅ0 अशोक कुमार वर्मा वैदिक साहित्य, यथार्थ, नैतिकता, तत्त्व, सत्य। Publication Details Published in : Volume 5 | Issue 4 | July-August 2022 Article Preview
असिस्टेण्ट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, जवाहर लाल नेहरू स्मारक पी0जी0 कालेज, महराजगंज, उत्तर प्रदेश।
Date of Publication : 2022-07-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 137-141
Manuscript Number : SHISRRJ1818933
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ1818933