वैदिक साहित्य में यथार्थ

Authors(1) :-डाॅ0 अशोक कुमार वर्मा

पाश्चात्य आलोचकों का यह मत कि ‘भारतीय साहित्य में यथार्थ तत्त्व नहीं के बराबर है स्वतः ही खण्डित हो जाता है। वैदिक कवियों ने प्रकृति से एकात्म होकर उसके गीत अवश्य गाये पर साथ ही कठोर यथार्थ जीवन की समस्याओं की उन्होंने तनिक भी उपेक्षा नहीं की। संस्कृत साहित्य में यथार्थ का जो विकास हुआ है, उसकी पृष्ठभूमि वैदिक साहित्य में प्राप्त होता है। वैदिक साहित्य में यथार्थ धर्म सर्वदा जुड़ा हुआ है, वह नैतिकता तथा मूल्य सापेक्षता को दृष्टि में रखकर प्रस्तुत किया गया है।

Authors and Affiliations

डाॅ0 अशोक कुमार वर्मा
असिस्टेण्ट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, जवाहर लाल नेहरू स्मारक पी0जी0 कालेज, महराजगंज, उत्तर प्रदेश।

वैदिक साहित्य, यथार्थ, नैतिकता, तत्त्व, सत्य।

  1. संस्कृत हिन्दी कोश- वामन शिवराम आप्टे पृ. 826.
  2. कृष्ण मोहन श्रीमाली-वैदिक साहित्य में प्रतिबिम्बित भारत पृ. 127-128.
  3. वस्तुवादी परिप्रेक्ष्य और प्राचीन साहित्य-पृ. 6-7
  4. ऋग्वेद 2/12/9
  5. वही पृ. 2/12/9
  6. वैदिक साहित्य और संस्कृति, पृ. 255-256
  7. ऋग्वेद-10/90/12
  8. शूद्रो का प्राचीन इतिहास पृ. 21-23.
  9. कारूरहं ततोभिषगुपल प्रक्षिणी नना। नानाभियो वसूववो गा इव तस्थिमेन्द्रो परिभ्रव। ऋग्वेद 9/112.
  10. अपाम सोमभमृता अभूभागन्म ज्योतिरविदाम देवान्। पृ. 8/48/3.
  11. पीतासो युद्धन्ते दुर्मदासो सुरायाम। पृ. 8/2/112.
  12. वही पृ. 10/95/3.
  13. वही पृ. 3/61/4.
  14. वही-पृ. 10/10.
  15. वही पृ. 9/56/3.
  16. अथर्वेद- पृ. 5/17/12.
  17. ऋग्वेद- पृ. 10/18/8.
  18. अथर्वेद पृथ्वीसूक्त 12/1/10.

Publication Details

Published in : Volume 5 | Issue 4 | July-August 2022
Date of Publication : 2022-07-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 137-141
Manuscript Number : SHISRRJ1818933
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ0 अशोक कुमार वर्मा, "वैदिक साहित्य में यथार्थ ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 5, Issue 4, pp.137-141, July-August.2022
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ1818933

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