नीतिशतकम्’ सन्दर्भित भाग्य एवं कर्म की अवधारणा

Authors(1) :-Dr. Rampratap Mishra

किसी भी काल का साहित्य तात्कालिक देश-काल, परिस्थिति एवं उस काल की विचारणाओं, अवधारणाओं से पूर्णतः या अंशतः प्रभावित अभिव्यक्ति होती है। संस्कृत साहित्य में लगभग छठीं शताब्दी पुर्वार्ध में भर्तृहरि नामक एक साहित्यकार का आविर्भाव हुआ। शतकत्रय (नीतिशतक, शृंगारशतक, वैराग्यशतक) वाक्यपदीय, नामक ग्रन्थ इन्हीं के नाम से प्रसिद्ध हैं। शतकत्रय के प्रणेता के सन्दर्भ में इतिहासकारों में मतभेद है। एक मत के अनुसार भर्तृहरि विक्रम संवत के प्रवर्तक विक्रमादित्य के भ्राता थे। इस सन्दर्भ में इतिहास भी पेचीदा तथ्य प्रस्तुत करता है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार अट्ठावन ईसा पूर्व में उज्जैन के एक स्थानीय राजा ने शकों को पराजित करके विक्रमादित्य की उपाधि धारण की और उसी विजय के उपलक्ष्य में सत्तावन ईसा पूर्व में विक्रम संवत को चलाया। तभी से विक्रमादित्य लोकप्रिय उपाधि बन गयी। जिसकी संख्या भारतीय इतिहास में चैदह तक पहुँच गयी। अब भर्तृहरि किस विक्रमादित्य के भाई थे, यह प्रश्न उपस्थित हो जाता है? एक बौद्ध चीनी-यात्री ’इत्सिंग’ जो अपनी यात्रावृत्त में उल्लेखित करता है कि उसके लिखने के चालीस वर्ष पूर्व लगभग छः सौ इक्यावन ईस्वी में भर्तृहरि नामक वैयाकरण का देहान्त हुआ था। यही भर्तृहरि ’वाक्यपदीय’ के लेखक माने जाते हैं। इस सन्दर्भ में ’संस्कृत साहित्य का इतिहास’ के प्रणेता डाॅ० कीथ कहते हैं कि यही भर्तृहरि शतकत्रय के लेखक हैं। इत्सिंग के कथनानुसार भर्तृहरि बौद्ध मतानुयायी थे परन्तु नीतिशतक एवं वाक्यपदीय के मंगलाचरण पर विचार करते हुए संस्कृतविदों ने इन्हें वेदान्तोक्त ब्रह्मोपासक सिद्ध किया है।

Authors and Affiliations

Dr. Rampratap Mishra
Assistant Professor & Head, Department of Sanskrit, D.C.S.K.P.G. College, Mau, Uttar Pradesh, India

  1. नीतिशतकम्, बालमनोरंजनी मनोरमाटीकाद्वयोपेतम्, प्रणेता- श्री कमलाकान्त शास्त्री दीनबन्धु, प्रकाशक- मास्टर खेलाड़ीलाल एण्ड सन्स, संस्कृत बुकडिपो कचैड़ीगली वाराणसी। द्वितीय संस्करण संवत 1996, तदनुसार 1942 ई०।ऽ नीतिशतकम्, बालमनोरंजनी मनोरमाटीकाद्वयोपेतम्, प्रणेता- श्री कमलाकान्त शास्त्री दीनबन्धु, प्रकाशक- मास्टर खेलाड़ीलाल एण्ड सन्स, संस्कृत बुकडिपो कचैड़ीगली वाराणसी। द्वितीय संस्करण संवत 1996, तदनुसार 1942 ई०।
  2. संस्कृत साहित्य का इतिहास- प्रणेता डाॅ० ए० बी० कीथ, अनुवादक- डाॅ० मंगलदेव शास्त्री, प्रकाशक- मोतीलाल बनारसीदास, द्वितीय संस्करण 1976।

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019
Date of Publication : 2019-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 01-06
Manuscript Number : SHISRRJ19211
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

Dr. Rampratap Mishra, "नीतिशतकम्’ सन्दर्भित भाग्य एवं कर्म की अवधारणा", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 1, pp.01-06, January-February.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ19211

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