उत्तररामचरित में आत्मा एवं परमात्मा का स्वरूप

Authors(1) :-डॉ. शान्ति लाल सालवी

आत्मा के स्वरूप के सम्बन्ध में दर्शनों में पर्याप्त मत भेद है। अति-प्राकृत पुरूष अपने पुत्र के पुष्ट एवं नष्ट होने पर मैं ही पुष्ट एवं नष्ट हुआ हूँ। इस अनुभव के कारण पुत्र को आत्मा कहा जाता है। श्रुति वचन भी है कि ”आत्मा वे पुत्र नामासि।“ इत्यादि कुछ चार्वाक स्थूलशीर को आत्मा कहते हैं। तैतरीयोपनिषद् में “एष पुरूषोऽन्नरसमयः।“ इत्यादि से युक्त बतलाया है

Authors and Affiliations

डॉ. शान्ति लाल सालवी
सहायक आचार्य, साहित्य विभाग, संस्कृतविद्या धर्मविज्ञान संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वारासी, भारत

  1. तैउ 2/1/1
  2. बृहदारण्यकोपनिषद् 1/4/7
  3. छाउ 5/1/7
  4. तैउ 2/2/1
  5. वही 2/3/1
  6. श्वेताश्वरोपनिषद् 6/11
  7. गीता 2/20
  8. स्वामी विवेकानन्द मरणोत्तरजीवन पृ 5
  9. कठोपनिषद्
  10. उच 1/1
  11. आनन्दस्वरूप टीका, उत्तररामचरितम् पृ 3
  12. हा हा देवि! स्फुटति हृदयं, छांसते देहबन्धः,
  13. शून्यं मन्ये जगदविरलज्वालमन्तज्र्वलाभि।
  14. सीदन्नधे तमसि विधुरो मज्जतीवान्तरात्मा
  15. विष्वड्मोहः स्थगयति कथं मन्दभाग्यः करोमि।। उच 3/38
  16. उत्तररामचरितम् पृ 312
  17. वही पृ 276
  18. ऋग्वेद 1116-420
  19. वही 12220
  20. श्वेताश्वतरोपनिषद् 67
  21. वही 69
  22. वही 611
  23. वही 2/8
  24. वही 2/9
  25. श्रीकृष्णगीता 6/11-13
  26. वही 6/15
  27. वही 1/3
  28. वही 1/6
  29. वही 3/1
  30. वही 3/2
  31. वही 3/19
  32. वही 3/18
  33. वही 3/13
  34. वही 3/17
  35. श्वेताश्वतरोपनिषद् 3/20
  36. वही 5/9
  37. वही 3/20
  38. वही 3/19
  39. वही 3/8         
  40. गीता 15/7      
  41. उत्तरामचरितम् 1/1  
  42. विष्णु पुराण 12284
  43. उत्तररामचरितम् 2/3   
  44. छान्दोग्योपनिषद 111
  45. आत्रेयी तेन हि पुनः समयेन तं भगवन्तमाविर्भूतशब्दप्रकाशमृषिमुवसंगम्य भगवान् भूतभावनः पद्मयातिनखोचत्ऋषे/ प्रबुद्धोऽसि वागात्मनि ब्रह्मणि। तद् बू्रहि रामचरितम्। अव्याहतज्योतिराष्ज्र्ञं ते चक्षुः प्रतिभातु। आद्यः कविरसि इत्युक्त्वान्तर्हितः। अथ स भगवान् पा्रचेतसः प्रथमं मनुष्येषु शब्दब्रह्मणस्तादृश विवर्तमितिहासं रामायणं प्रणिनाय। उच 2/5 के बाद पृ 130
  46. गीता 94
  47. उत्तरामचरितम् पष्ठ अंक पृष्ठ 10
  48. उच 6/26 के बाद पृष्ठः 416
  49. वही 6/27
  50. त्वष्ट्टयन्त्रभ्रमितभ्रान्तमार्तण्डज्योतिरूज्ज्वलः।
  51. पुर्ट भेदो ललाटस्थ नील लोहितचक्षुषः।। (उच 6/3)
  52. वही: 1/1 के बाद पृष्ठ-4
  53. ईशावास्योपनिषद: प्रथम मन्त्र

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019
Date of Publication : 2019-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 34-41
Manuscript Number : SHISRRJ192110
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डॉ. शान्ति लाल सालवी, "उत्तररामचरित में आत्मा एवं परमात्मा का स्वरूप", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 1, pp.34-41, January-February.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192110

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