Manuscript Number : SHISRRJ192112
असमिया साहित्य और रमन्यासवाद
Authors(1) :-दिगंत बोरा हिंदी साहित्य की तरह असमिया साहित्य में भी अंग्रेजी साहित्य के प्रभाव से स्वच्छंदतावाद की धारा प्रवाहित हुई। पहले असमिया साहित्य में अंग्रेजी के 'रोमांटिक' (Romantic) के पर्याय के रूप में नवन्यासिक शब्द को अपनाया गया। बाद में महेंद्र बोरा ने ‘रोमांटिक’ और ‘रोमांटिसिज्म’ (Romanticism) के पर्याय के रूप में क्रमशः 'रमन्यास' और 'रमन्यासवाद' शब्दों को प्रयोग किया। असमिया साहित्य में नयी चेतना के प्रवाह में बांगला और अंग्रेजी साहित्य के नवजागरण की भूमिका को अनदेखी नहीं की जा सकती। रमन्यासवाद के प्रवर्तक त्रिमूर्तियाँ हैं- चंद्रकुमार अगरवाला, लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा और हेमचंद्र गोस्वामी। रोमांटिक साहित्य को किसी ने व्यक्तिवादी, तो किसी ने साहित्य का उदारीकरण, तो किसी ने भविष्य के रंगीन सपनों से जोड़ा। प्रकृति प्रेम, स्वदेशानुराग, प्रेमानुभूति, रहस्यवाद, कल्पना प्रवणता, सौंदर्यानुभूति, अतींद्रियवाद, आत्मविमुग्धता, मानवतावाद, चित्रात्मक भाषा आदि रमन्यासवाद की प्रधान प्रवृत्तियाँ हैं। रोमांटिक साहित्य का प्रभाव असमिया साहित्य पर 1889-1940 तक विशेष रूप से गीतिकाव्य पर दिखाई देता है। सॉनेटों, शोकगीतों, साहित्यिक लोकगीतों तथा व्यंगात्मक कविताएँ भी प्रचुरता से लिखी गयी। चंद्रकुमार अगरवाला की 'वनकुँवरी' को प्रथम रोमांटिक कविता का श्रेय मिला। इसके पश्चात असमिया साहित्य के सभी विधाओं में यह धारा चली।
दिगंत बोरा रोमांटिक, रमन्यास, रमन्यासवाद (रोमांटिसिज़्म), स्वच्छंदतावाद, नवन्यासिक, प्रकृति, रहस्यात्मकता, व्यंगात्मकता, अतींद्रियवाद, असमिया, साहित्य, मानवतावाद, विद्रोही, राष्ट्रप्रेम, कल्पना, व्यक्तिसत्ता, वेदना, आत्मानुभूति, अभिजात्यवादी, शास्त्रीय आदि. Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019 Article Preview
शोधार्थी, हिंदी विभाग, राजीव गांधी विश्वविद्यालय, रोनो हिल्स, इटानगर, अरुणाचल प्रदेश, भारत
Date of Publication : 2019-01-30
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Page(s) : 51-60
Manuscript Number : SHISRRJ192112
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192112