चौथीराम यादव का अस्मितावादी चिंतन व प्रतिरोध की परंपरा

Authors(1) :-अनीश कुमार

आलोचना विधा हिन्दी साहित्य क एक महत्वपूर्ण विधा है । आलोचना किसी भी साहित्य में एक कसौटी की तरह कार्य करता है । आलोचना जगत में विभिन्न धाराएँ अपनी उपस्थिती दर्ज करवाती है । आलोचना अपने शुरुआत से लेकर आज तक अनेकों उतार-चढ़ाव से होकर गुजरा है । आलोचना की शुरुआत मुख्यतया द्विवेदी युग के समय से माना जाता है । साहित्य के किसी विधा की आलोचना उसकी सार्थकता मानी जाती है । ऐसा माना जाता है कि बिना आलोचना के कोई भी साहित्य साहित्य कि श्रेणी में नहीं आता । आज तक आलोचना की विभिन्न दृष्टियों के माध्यम से हिन्दी साहित्य के लेखन को देखा व परखा जाता रहा है । चौथीराम यादव मानते हैं कि सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य एक प्रगतिशील साहित्य है ।

Authors and Affiliations

अनीश कुमार
पी-एच.डी. शोध छात्र, हिन्दी विभाग, सांची बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय, बारला, रायसेन, मध्य प्रदेश, भारत

  1. नाल्ह, नरपति नाल्ह. बीसलदेव रासो. पृष्ठ संख्या 23
  2. यादव, चौथीराम. (2014). उत्तरशती के विमर्श और हाशिये का समाज. नई दिल्ली : (अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स (प्रा) लिमिटेड). पृष्ठ संख्या 29
  3. वही, पृष्ठ संख्या 29
  4. वही, पृष्ठ संख्या ९
  5. वही, पृष्ठ संख्या 20
  6. वही, पृष्ठ संख्या १३
  7. वही, पृष्ठ १०३
  8. वही, पृष्ठ संख्या 18
  9. वही, पृष्ठ संख्या 18
  10. थापा, सूरज बहादुर. (सं.). (2016). जब जब देखा लोहा देखा. नई दिल्ली : (अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स (प्रा) लिमिटेड). पृष्ठ संख्या 30
  11. साक्षात्कार, आलोचक चौथीराम यादव जी से दिनेश पाल और दीपक कुमार की बातचीत, अपनी माटी पत्रिका, दलित आदिवासी विशेषांक, अंक १९, सितंबर-नवंबर २०१५

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019
Date of Publication : 2019-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 113-116
Manuscript Number : SHISRRJ192121
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

अनीश कुमार, "चौथीराम यादव का अस्मितावादी चिंतन व प्रतिरोध की परंपरा", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 1, pp.113-116, January-February.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192121

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