शांकरवेदान्त में जीवब्रह्मैक्य का स्वरूप

Authors(1) :-डॉ कपिल गौतम

भारतीय ज्ञान परम्परा में अनादिकाल से मूल कारण के विषय में विचार किया गया है । श्रुति में विश्व के मूल में एकमात्र परम चेतना या ब्रह्म को स्थापित किया जो विश्व का उपादान एवं निमित्त कारण दोनो हैं। परन्तु प्रश्न समुपस्थित होता है कि जब परम चेतना ब्रह्म ही जगत का मूल कारण है तो जीव क्या है ? शांकरवेदान्त में इस जिज्ञासा का समाधान वाद त्रयी (अवच्छेदवाद, प्रतिबिम्बवाद, प्रतिभासवाद) के आधार पर किया है । जिसके अनुसार ब्रह्म एवं जीव पारमार्थिक दृष्टि से एक परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से भिन्न है । व्यवहार में जीव एवं आत्मन् में भेद मानकर ही सांसारिक व्यापार चलता है । जीव और ब्रह्म के ऎक्य ज्ञान से मिथ्याज्ञान का नाश होती है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है ।तत्त्वमसि (छा०७/२६/२) आदि ऎसे वाक्य हैं जो जीव एवं ब्रह्म के ऎक्य का प्रतिपादन करते हैं। परन्तु शाकरवेदान्त में जो जीव और ब्रह्म का ऎक्य को प्रतिपादित किया है वह ऎक्य किस प्रकार का है ? वह आरोपित अभेद है या वास्तविक अभेद । इस प्रश्न पर चतुर्थ ब्रह्मसूत्र के शांकरभाष्य में विशद विचार किया है । इस पर भामती एवं विवरण टीकाओं ने भ्रमरहित एवं स्पष्ट दृष्टि प्रदान की है । प्रस्तुत शोधपत्र में शांकरभाष्य एवं इसकी प्रमुख टीकाओं के आधार पर जीव एवं ब्रह्म के ऎक्य के वास्तविक स्वरूप को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है ।

Authors and Affiliations

डॉ कपिल गौतम
सहायक आचार्य, संस्कृत विभाग मानविकी एवं समाजविज्ञान विद्यापीठ, वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा, भारत

जीव, ब्रह्मन्, वास्तविक, आरोपित, अभेद, प्रतीकोपासना, सम्पद्रूप, अध्यासरूप, आरोप, आरोप्य, संवर्ग, कर्माङ्गसंस्कार

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Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019
Date of Publication : 2019-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 07-11
Manuscript Number : SHISRRJ19213
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डॉ कपिल गौतम, "शांकरवेदान्त में जीवब्रह्मैक्य का स्वरूप", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 1, pp.07-11, January-February.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ19213

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