बुद्ध की अनुशासनप्रियता

Authors(1) :-डाॅ अभिजात ओझा

महात्मा बुद्ध एक अनुशासनप्रिय प्राणी थे। यह बुद्ध के अनुशासित जीवन और उनके अनुशासनप्रिय स्वभाव की ही देन थी कि उन्होंने अपने जीवन काल में संघ रूपी इतनी बड़ी भिक्षुओं की संस्था खड़ी की जो कई सौ सालों तक निरंतर चलती रही। इस भिक्षुसंघ को इसके मूल स्वरूप में कुछ परिवर्तनों समेत बनाए रखने के लिए आनन्द, महाकश्यप, मुग्गलीपुत्ततिष्य, अनेक वरिष्ठ भिक्षुओं तथा आजातशत्रु, बिम्बिसार, अशोक जैसे राजाओं ने संगीतियों के माध्यम से संघ में भेद और फूट पड़ने से रोकने का बहुविध प्रयास किया। यह सर्वमान्य है कि बुद्ध ने कठोर तप द्वारा सम्यक् सम्बोधि का लाभ प्राप्त किया था। किन्तु बाद में वे मध्यम मार्ग के उद्घोषक एवं प्रवर्तक हो गये थे। उनके शिष्यों का एक वर्ग ऐसा भी था जो कठोर साधना का पक्षपाती था। वह चाहता था कि बुद्ध वैनयिक अनुशासन को कठोर बनायें और भिक्षुगणों को यह आदेश दें कि वे जीवनपर्यन्त आरण्यक, पिण्डपातिक, पांशुमूलिक और वृक्षमूलिक बने रहें तथा मत्स्य-माँस का भक्षण कभी न करें। इसी कठोर साधना के सन्दर्भ में कठोर तापस भिक्षुओं ने धुतांगो का समावेश किया। विसुद्धिमग्ग तथा मिलिन्दपंहों जैसे बौद्ध ग्रन्थों में 13 धुतांगों का विस्तृत विवरण मिलता है। इन 13 धुतांगों के परिपालन से भिक्षुगणों का जीवन पवित्र होता था, साथ ही सांसारिक व्यामोह भी भंग हो जाता था। उनमें वैराग्य की भावना जागृत हो जाती थी

Authors and Affiliations

डाॅ अभिजात ओझा
अतिथि प्रवक्ता, इतिहास विभाग, इलाहाबाद डिग्री काॅलेज प्रयागराज, (विश्वविद्यालय, इलाहाबाद), भारत

  1. दृष्टव्य, गोविन्द चन्द्र पाण्डे, बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, लखनऊ, पंचम संस्करण-2010, अध्याय-3
  2. शतपथ ब्राह्मण
  3. उप समीपे सन्निकटे वसति ति उपवासः
  4. दीर्घनिकाय, भाग दो, (राहुल सांकृत्यायन का हिन्दी अनुवाद) महाबोधि सभा, सारनाथ, वाराणसी, 1966, पृ0 39
  5. पातिमोक्खं ति आदियेतं, मुखयेतं, पमुखयेतं कुसलानं धम्मानं तेन बुच्चति पातिमोक्खं ति। महावग्ग (राहुल सांस्कृत्यायन का हिन्दी अनुवाद), महाबोधि सभा, सारनाथ, वाराणसी, 1935, पृ0 106
  6. गोविन्द चन्द्र पाण्डे, बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, लखनऊ, अध्याय-3
  7. मारिस विण्टरनित्स, ए हिस्ट्री आॅव इण्डियन लिटरेचर, जिल्द-प्प्, पृ0 5
  8. वही,
  9. वही, पृ0 4
  10. वही, पृ0 5
  11. गोविन्द चन्द्र पाण्डे, पूर्वो0, पृ0 106
  12. मथुरा से प्राप्त सिंह शीर्ष युक्त स्तम्भ अभिलेख (प्रथम शता0 ई0), में महासांघिक सम्प्रदाय का उल्लेख मिलता है।
  13. नलिनाक्ष दत्त, बुद्धिस्ट सेक्ट्स इन इण्डिया, दिल्ली, द्वितीय संस्करण, 1978, पृ0 55
  14. ‘‘वय धम्मा संखारा, अप्पमोदन संपादेय ति’’
  15. गोविन्द चन्द्र पाण्डे, पूर्वो0, पृ0 106
  16. ‘‘विनयोनाम बुद्ध सासनस्य आयु विनयेठिते ठितं नामहोति।’’

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019
Date of Publication : 2019-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 12-16
Manuscript Number : SHISRRJ19215
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ अभिजात ओझा, "बुद्ध की अनुशासनप्रियता", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 1, pp.12-16, January-February.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ19215

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