Manuscript Number : SHISRRJ19215
बुद्ध की अनुशासनप्रियता
Authors(1) :-डाॅ अभिजात ओझा महात्मा बुद्ध एक अनुशासनप्रिय प्राणी थे। यह बुद्ध के अनुशासित जीवन और उनके अनुशासनप्रिय स्वभाव की ही देन थी कि उन्होंने अपने जीवन काल में संघ रूपी इतनी बड़ी भिक्षुओं की संस्था खड़ी की जो कई सौ सालों तक निरंतर चलती रही। इस भिक्षुसंघ को इसके मूल स्वरूप में कुछ परिवर्तनों समेत बनाए रखने के लिए आनन्द, महाकश्यप, मुग्गलीपुत्ततिष्य, अनेक वरिष्ठ भिक्षुओं तथा आजातशत्रु, बिम्बिसार, अशोक जैसे राजाओं ने संगीतियों के माध्यम से संघ में भेद और फूट पड़ने से रोकने का बहुविध प्रयास किया। यह सर्वमान्य है कि बुद्ध ने कठोर तप द्वारा सम्यक् सम्बोधि का लाभ प्राप्त किया था। किन्तु बाद में वे मध्यम मार्ग के उद्घोषक एवं प्रवर्तक हो गये थे। उनके शिष्यों का एक वर्ग ऐसा भी था जो कठोर साधना का पक्षपाती था। वह चाहता था कि बुद्ध वैनयिक अनुशासन को कठोर बनायें और भिक्षुगणों को यह आदेश दें कि वे जीवनपर्यन्त आरण्यक, पिण्डपातिक, पांशुमूलिक और वृक्षमूलिक बने रहें तथा मत्स्य-माँस का भक्षण कभी न करें। इसी कठोर साधना के सन्दर्भ में कठोर तापस भिक्षुओं ने धुतांगो का समावेश किया। विसुद्धिमग्ग तथा मिलिन्दपंहों जैसे बौद्ध ग्रन्थों में 13 धुतांगों का विस्तृत विवरण मिलता है। इन 13 धुतांगों के परिपालन से भिक्षुगणों का जीवन पवित्र होता था, साथ ही सांसारिक व्यामोह भी भंग हो जाता था। उनमें वैराग्य की भावना जागृत हो जाती थी
डाॅ अभिजात ओझा Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019 Article Preview
अतिथि प्रवक्ता, इतिहास विभाग, इलाहाबाद डिग्री काॅलेज प्रयागराज, (विश्वविद्यालय, इलाहाबाद), भारत
Date of Publication : 2019-01-30
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Page(s) : 12-16
Manuscript Number : SHISRRJ19215
Publisher : Shauryam Research Institute
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