Manuscript Number : SHISRRJ19216
भास के रूपकों में आश्रम - व्यवस्था
Authors(1) :-डाॅ0 सविता ओझा हिन्दू विचारकों ने मानव-जीवन को समग्रतापूर्वक व्यवस्थित रूप प्रदान करने तथा आध्यात्मिक उत्कर्ष के लिए आश्रम-व्यवस्था का विधान किया था। यदि वर्ण-व्यवस्था का उद्देश्य समाज को व्यवस्थित करना था, तो आश्रम-व्यवस्था का उद्देश्य मानव की ऐहिक एवं पारलौकिक उन्नति करना था। व्यवस्थाकारों ने जीवन की वास्तविकता को ध्यान में रखते हुए ज्ञान, कत्र्तव्य, त्याग और अध्यात्म के आधार पर मानव जीवन को ब्रह्मचर्य गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास नामक चार आश्रमों में विभाजित किया, जिसका अन्तिम लक्ष्य था- मोक्ष की प्राप्ति। मानव-जीवन का चार भागों में विभाजित होने का सन्दर्भ उत्तरवैदिककालिक है। ऐतरेय ब्राह्मण और तैत्तिरीय संहिता में चारों आश्रमों का उल्लेख मिलता है।1 जाबालोपनिषद् में भी चारों आश्रमों का अभिधान किया गया है।
डाॅ0 सविता ओझा Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019 Article Preview
एसो0 प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, ने0ग्रा0भा0मा0वि0वि0, प्रयागराज।, भारत
Date of Publication : 2019-01-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 17-20
Manuscript Number : SHISRRJ19216
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ19216