संस्कृत वाङ्मय में पाणिनीय विभक्तिविमर्श

Authors(1) :-डाॅ देवेन्द्र पटेल

भारतीय काव्यशास्त्रियों की दृष्टि में चतुवर्गफलदायक तथा कीर्ति प्रीति प्रयोजनात्मक मोक्ष-सोपान परम्परा वितानक स्वरूप काव्यों में भाषा साहित्य के अन्तर्गत तत्त्वों रसादि की अभिव्यंजिका होती है। भाषा ही विचारों को मूर्त रूप प्रदान करती है तथा भाषा को व्यवस्थित रूप प्रदान करता है-व्याकरण। व्याकरण को परिभाषित करते हुए महर्षि पतञ्जलि कहते हैं।

Authors and Affiliations

डाॅ देवेन्द्र पटेल
ग्राम-राजपुरखुर्द, पोस्ट-करैलिया, जनपद-महराजगंज, उ0प्र0।, भारत

  1. व्याकरण म0 भाष्य- भाग-1।
  2. व्यासः (का0 वृ0- भाग-1, पृ0 7)
  3. व्या0म0भा0 पृष्ठ-240, चैखम्बा प्रकाशन।
  4. अष्टाध्यायी 1/4/104।
  5. भाष्यमहानुसारम्- भाग 1 पृष्ठ0 654।
  6. सम्बोधने च- 2/3/47।
  7. भगवद्गीता- 11/41।
  8. अनुर्लक्षणे- 1/4/84, तृतीयाऽर्थे 1/04/85, हीने1/4/86, लक्षणेत्थं1/4/90।
  9. ‘अधिपरि अनर्थकौ’1/04/90
  10. अभिरभागे 1/04/91
  11. सुः पूजायाम् 1/04/94
  12. अतिरक्रमणे च 1/04/95
  13. उपोधिके च 1/04/87
  14. 02/03/04
  15. कालाध्वनोरतयन्तसंयोगे 02/03/05।
  16. गीता 16/ 05।
  17. रामायण 06/92/35।
  18. कालाध्वनोरत्यन्त संयोगे 02/03/05।
  19. दशकुमारचरित -159।
  20. सहयुक्तेऽप्रधाने 2/03/19।
  21. येनाङ्गविकारः 02/03/20
  22. कुमारसम्भव 4/33।
  23. 1 श्लोक।
  24. 1/19/02।
  25. इत्थंभूतलक्षणे 2/3/21।
  26. 125 वां श्लोक।
  27. रामा0 03/23/28।
  28. मालविकाग्निमित्रम् 1/18।

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019
Date of Publication : 2019-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 21-24
Manuscript Number : SHISRRJ19217
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ देवेन्द्र पटेल, "संस्कृत वाङ्मय में पाणिनीय विभक्तिविमर्श", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 1, pp.21-24, January-February.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ19217

Article Preview