भारतीय संस्कृति में विभिन्न संस्कार व्यवस्था

Authors(1) :-सुशील कुमार

जन्म से लेकर मृत्यु तक सारा जीवन विभिन्न संस्कारों से शुद्ध और पवित्र होता रहता है। संस्कारों को संपन्न किए बिना व्यक्ति का जीवन अपवित्र, अपूर्ण और अव्यवस्थित था, शरीर और आत्मा की शुद्धि और पवित्रता संस्कारों के संपादन से ही संभव थी। जीवन को विविध बाधाओं और विघ्नों से दूर रखना संस्कारों का मूल रहा है।

Authors and Affiliations

सुशील कुमार
शोध छात्र, वैदिक दर्शन विभाग, संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उŸार प्रदेश।,भारत

अपवित्र, अपूर्ण, अव्यवस्थित, शरीर, आत्मा, शुद्धि, भौतिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक।

  1. ंस्कृति, रहीस सिंह, मैग्रा हिल पब्लिकेशन्स, दिल्ली, पृ0 2.11
  2. भारतीय कला एवं संस्कृति, रहीस सिंह, मैग्रा हिल पब्लिकेशन्स, दिल्ली, पृ0 2.11-2.12
  3. भारतीय कला एवं संस्कृति, रहीस सिंह, मैग्रा हिल पब्लिकेशन्स, दिल्ली, पृ0 2.12
  4. अथर्ववेद, 5.25.3, 5, बृ॰ उप॰ 6.4.21.
  5. मनु॰, 3.47
  6. आ॰ गृ॰ सू॰, 1.13, 2-7.
  7. पुंसवनमिति कर्मनाधेयं येन कर्मणा। निमिŸोन गर्भिणी पुमांसमेव सूते सत्पुंसवनम्।। आ॰ गृ॰ सू॰, 14.9
  8. भारतीय कला एवं संस्कृति, रहीस सिंह, मैग्रा हिल पब्लिकेशन्स, दिल्ली, पृ0 2.12
  9. पा॰ गृ॰ सू॰, 1.14.2, बौ॰ गृ॰ सू॰, 1.9.1, वी॰ मि॰ सं॰, 1, पृ0 172
  10. ओं वीरसूस्तवं भव, जीवसूस्त्वं भव, जीवपत्नी त्वं भव। गौ॰ गृ॰ सू॰, 27.13
  11. प्राङ् नाभिवर्धनात् पुंसो जातकर्म विधीयते। मन्त्रवत् प्राशनं चास्य हिरण्यमधुसर्पिषाम्।। मनु॰ 2.29
  12. जातं कुमारं स्वं दृष्ट्वा स्तात्वाऽऽनीय गुरुंम् पिता। नान्दी श्राद्धावसाने तु जातकर्म समाचरेत्।। ब्रह्म॰ पु॰, वी॰ मि॰ 1 पृ॰ 142 पर उद्धत
  13. जातस्य जातकर्मादिक्रियाकाण्डमशेषतः। पुत्रस्य कुर्वीत पिता श्राद्धं चाभ्युदयात्कम्।। विष्णु॰ पु॰, 3.10, 4-5.
  14. नामधेयं दशभ्यां तु द्वादश्यां वास्य कारयेत्। पुण्ये तिथौ मुहूर्Ÿो वा नक्षत्रे वा गुणान्विते।। मनु॰ 2.30
  15. चतुर्थे मासि निष्क्रमणिका सूर्यमुदीक्षयति तच्चक्षुरिति। पा॰ गृ॰ सू॰, 1.17
  16. चतुर्थे मासि कर्तव्यं शिशोनिष्क्रमणं गृहात्। षष्ठेन्नप्राशनं मासि यद्वेष्टं मंगलं कुले।। मनु॰ 2.34
  17. तृतीये मासे कर्तव्यं शिशोः सूर्यस्य दर्शनम्। चतुर्थे मासि कर्तव्यं तथा चन्द्रस्य दर्शनम्।। का॰ गृ॰ सू॰, 37-38
  18. शां॰ गृ॰ सू॰, 1.27, आ॰ ध॰ सू॰, 1.16.1.
  19. बालस्य यत्प्रथमभोजनं तदुच्येत प्राशनम्। शब्दानुशासन, 6.4.25,
  20. स च चूड़ाकरणशब्दः कर्मनामधेयम् यौगिकन्यायेनोदिभदादिशब्दवत्। महाभाष्य, 2, पृ॰ 262
  21. चूडार्थ करणं चूडा क्रियते यस्मिन्कर्मणीति वा त्रिधैव संभवति। संस्कारप्रकाश, पृ॰ 295
  22. चूड़ाकर्म द्विजातीनां सर्वेषामेव धर्मतः। प्रथमेऽब्दे तृतीये वा कर्तव्यं श्रुतिचोदनात्।। मनु॰, 2.35
  23. चूड़ाकर्मादिके तथा ...... नान्दीमुख पितृगणं पूजयेत्। विष्णु पु॰, 3.13.6
  24. स्मृतिचन्द्रिका, 9, पृ॰ 25.
  25. अथर्ववेद, 6.
  26. प्रथमे सप्तमे वापि अष्टमे दशमेथवा। द्वादशे वा प्रकुर्वीत कर्णवेधं शुभंवहम्।। गर्ग, उद्धृत, हिन्दू संस्कार, पृ॰ 130.
  27. सुश्रुत्, 16.1
  28. संस्कारप्रकाश, पृ॰ 260.
  29. अपरार्क, पृ॰ 30-31.
  30. स्मृतिचन्द्रिका, 1, पृ॰ 26.
  31. हिन्दू संस्कार, राजबली पाण्डेय, पृ॰ 99-100.
  32. गर्भाष्टमेऽब्दे कुर्वीत ब्राह्मणस्योपनायनम्। गर्भादेकादशे राज्ञो गर्भाŸाु द्वादशे विशः।। मनु॰, 2.36
  33. कृतोपनयनं चैममौर्वो वेदशास्त्रणि ...... अध्यापयामास। विष्णु पु॰ 4.3.37
  34. भारतीय कला एवं संस्कृति, रहीस सिंह, मैग्रा हिल पब्लिकेशन्स, दिल्ली, पृ॰ 2.15
  35. अध्येष्यमाणस्तृवाचान्तो यथाशास्त्रमुदङमुखः। ब्रह्मांजलिकृतोऽध्यायो लघुवासा जितेन्द्रियः।। मनु॰, 2.70
  36. ब्रह्मणः प्रणवं कुर्यादादावन्ते च सर्वदा। स्रवत्यानोङ्कृतं पूर्वं, पुरस्ताच्च विशीर्यति।। मनु॰, 2.74
  37. आ॰ गृ॰ सू॰, 1.18.
  38. केशान्तः षोडशे वर्षे ब्राह्मणस्य विधीयते। राजन्यबन्धोद्र्वाविंशे वैश्यस्य द्वयधिके ततः।। मनु॰, 2.65
  39. वीरमित्रोदय, 1, पृ॰ 534.
  40. एकदहः स्नातानां ह वा एव एोजसा। तपति तस्मादेनमेतदहर्नाभितपेत्।। भ॰ गृ॰ सू॰ 11.1.9
  41. सान्तानिकादयो वा ते याच्यमाना निराकृता .... येनासि विगतप्रभः। विष्णु पु॰, 5.38

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019
Date of Publication : 2019-03-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 207-217
Manuscript Number : SHISRRJ192290
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

सुशील कुमार, "भारतीय संस्कृति में विभिन्न संस्कार व्यवस्था", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 2, pp.207-217, March-April.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192290

Article Preview