Manuscript Number : SHISRRJ192316
गीतोपनिषद् में पारिस्थितिकीय चिन्तन
Authors(1) :-डॉ. रवि प्रभातः मानवजीवन की ध£मक-आध्यात्मिक-मानसिक समस्याओं के समाधन में समर्थ गीता में पर्यावरण संरक्षण एवं पारिस्थितकीय संतुलन के विषय में ऐसी उदात्त भावना अभिव्यक्त हुई है जो निश्चय ही वर्तमान पारिस्थितकीय संकट को भी दूर करने में समर्थ है। अतः गीता में व्यक्त पर्यावरण संरक्षण एवं पारिस्थितकीय चिन्तन को अपने आचरण एवं व्यवहार में लाने की आवश्यकता है।
डॉ. रवि प्रभातः गीता ,पर्यावरण, मानवजीवन, ध£मक, आध्यात्मिक, मानसिक Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019 Article Preview
पोस्ट डॉक्टोरल फेलो, संस्कृत विभागः, दिल्ली विश्वविद्यालयः, दिल्ली, भारत
Date of Publication : 2019-03-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 225-231
Manuscript Number : SHISRRJ192316
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192316