गीतोपनिषद् में पारिस्थितिकीय चिन्तन

Authors(1) :-डॉ. रवि प्रभातः

मानवजीवन की ध£मक-आध्यात्मिक-मानसिक समस्याओं के समाधन में समर्थ गीता में पर्यावरण संरक्षण एवं पारिस्थितकीय संतुलन के विषय में ऐसी उदात्त भावना अभिव्यक्त हुई है जो निश्चय ही वर्तमान पारिस्थितकीय संकट को भी दूर करने में समर्थ है। अतः गीता में व्यक्त पर्यावरण संरक्षण एवं पारिस्थितकीय चिन्तन को अपने आचरण एवं व्यवहार में लाने की आवश्यकता है।

Authors and Affiliations

डॉ. रवि प्रभातः
पोस्ट डॉक्टोरल फेलो, संस्कृत विभागः, दिल्ली विश्वविद्यालयः, दिल्ली, भारत

गीता ,पर्यावरण, मानवजीवन, ध£मक, आध्यात्मिक, मानसिक

  1. 21वीं सदी में पर्यावरण एवं पर्यावरण शिक्षा, पृ. 217
  2. अथर्व. 12.1.12
  3. श. ब्रा. 6.8.2.2
  4. छान्दोग्योपनि. 3/4/1
  5. वही, 6/2/1
  6. वृहदारण्यकोप. 2/5/19
  7. गी. 7.4-5
  8. गीता - 7.7
  9. गी. 13.26
  10. गी. 3.14-16
  11. गी. 15-13
  12. गी. 15-7
  13. गी. 15.15
  14. गी. 18.20
  15. गी. 12-13
  16. गी. 5.25, 12.4
  17. वही 13.27, 18.54
  18. वही 11.55

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019
Date of Publication : 2019-03-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 225-231
Manuscript Number : SHISRRJ192316
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डॉ. रवि प्रभातः, "गीतोपनिषद् में पारिस्थितिकीय चिन्तन", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 2, pp.225-231, March-April.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192316

Article Preview