Manuscript Number : SHISRRJ192319
उत्तररामचरित में चित्रित भवभूति का दाम्पत्य प्रेम (तृतीय अंक के सन्दर्भ में)
Authors(1) :-डाॅ. रेखा गुप्ता भवभूति ने अपने उत्कृष्ट नाटक ‘उत्तररामचरित’ में जिस दाम्पत्य-प्रेम का वर्णन किया है वह निःस्वार्थ भावना से युक्त है, उसमें कहीं भी स्वार्थ की कालिमा नहीं है। भवभूति ने जिस प्रेम का वर्णन किया है, वह वासना से मुक्त है। राम का प्रेम सीता के प्रति तथा सीता का प्रेम राम के प्रति अन्योऽन्य समर्पण की भावना से युक्त है। महाकवि भवभूति द्वारा प्रतिपादित दाम्पत्य-प्रेम सम्पूर्ण संसार के लिए स्थापित एक उच्च आदर्श है, जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रेरणा स्रोत है कि पति-पत्नी यदि किन्हीं कारणवश एक-दूसरे से अलग हो जाएं और उनका प्रेम सच्चा है, तो वह निरन्तर बढ़ता ही जाता है। पति का पत्नी में तथा पत्नी में पति का परस्पर एक दूसरे के प्रति अटूट आस्था तथा विश्वास ही इसका आधार है; जिसको महाकवि भवभूति ने अपने श्रेष्ठ नाटक ‘उत्तररामचरित’ में बहुत ही सुन्दर ढंग से चित्रित किया है।
डाॅ. रेखा गुप्ता उत्तररामचरित, भवभूति, दाम्पत्य, प्रेम, राम, सीता, नाटक, तृतीय, अंक। 1 भवभूति, उत्तररामचरित, 3/9 Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 3 | May-June 2019 Article Preview
बी.एम. मेमोरियल ककरही किशुनपुर, माडरमऊ, अम्बेडकर नगर (यू॰पी॰),भारत
2 तत्रैव, 3/11
3 तत्रैव, 3/12
4 तत्रैव, 3/14
5 तत्रैव, 3/31
6 तत्रैव, 3/32
7 तत्रैव, 3/33
8 तत्रैव, 3/35
9 तत्रैव, 3/38
10 तत्रैव, पृ. 259
11 तत्रैव, श्लोक 3/44
12 तत्रैव, पृ. 267
13 तत्रैव, श्लोक 3/5
14 “भगवति! कि भणस्यपरिस्फुटेति! स्वरसंयोगेन प्रत्यभिजानामि, नन्वार्यपुत्रणैवैत द्वयाहृतम्।” तत्रैव, पृ. 198
15 तत्रैव, पृ. 202
16 तत्रैव, पृ. 205
17 तत्रैव, पृ. 216
18 ‘अहमेवैतस्य हृदयं जानामि, ममाप्यैषः।’ तत्रैव, पृ. 208
19 तत्रैव, पृ. 229
20 तत्रैव, पृ. 236
21 तत्रैव, पृ. 250
22 तत्रैव, पृ. 254
23 तत्रैव, पृ. 259
24 तत्रैव, पृ. 267
25 तत्रैव, पृ. 268
Date of Publication : 2019-05-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 83-88
Manuscript Number : SHISRRJ192319
Publisher : Shauryam Research Institute
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