भवभूति-की कृतियों में नारी विमर्श

Authors(1) :-कुलदीप सिंह राव

नारी भगवान् की वह रचना है जिसके बिना मानव समाज की कल्पना भी संभव नहीं है। भारतीय संस्कृति में नारी आयात्मिक एवं सांसारिक सभी पुरुषाथर्¨ं का मूल है। उसके बारे में जितना भी कहा जाय या लिखा जाय वह कम है। वेद¨ं एवं अन्य शाó¨ं में नारी के विभिन्न आयाम¨ं का विशद् वर्णन है ज¨ नारी के सनातन स्वरूप का प्रमाण है। समय परिवर्तनशील है, सामाजिक स्वरूप बदलता रहता है। नारी आज भी समाज के केन्द्र में है जिसके बिना सभ्य समाज की बात भी नहीं की जा सकती है। वैदिक काल से ल्¨कर आज तक नारी का वर्णन अनेक रूप¨ं मंे किया गया है। कही पुत्र्ाी है, कहीं वह पत्नी अ©र कहीं माता के रूप दिखाई देती है। विश्¨षताअ¨ं की बात की जाय त¨ जितने विश्¨षण नारी क¨ प्राप्त हैं, शायद ही किसी, दूसरे के लिए इसकी कल्पना भी की जा सके। इस सम्बन्ध में निम्न पंक्तियाँ दृष्टव्य है

Authors and Affiliations

कुलदीप सिंह राव
गायत्री नगर, खेमली स्टेशन, तहसील, मावली, जिला, उदयपुर, राजस्थान,भारत

1. ऋग्वेद- 10/85/46.
2. महावीरचरितम् 1/30.
3. वही, 1/36.
4. उत्तररामचरितम् प्रथम अंक।
5. वही, 3/4.
6. वही, 4/11.
7. वही, 1/13.
8. वही, 1/37.
9. वही, 6/38.
10. मालतीमाधव, 6/18.
11. उत्तररामचरित, 3/7/8.
12. शतपथ ब्राह्मण- 5/2/1/10.
13. ऐतरेय आरण्यक, 6/1/5.
14. उत्तररामचरितम्, 7/20.
15. वही, 1/34.
16. वही, तृतीय अंक, पृ0 245.
17. वही, 1/39.
18. वही, तृतीय अंक, पृ0 320.
19. वही, तृतीय अंक, पृ0 314.

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019
Date of Publication : 2019-04-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 101-106
Manuscript Number : SHISRRJ19232
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

कुलदीप सिंह राव, "भवभूति-की कृतियों में नारी विमर्श", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 2, pp.101-106, March-April.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ19232

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