Manuscript Number : SHISRRJ192323
वैशेषिक दर्शन में कर्म की अवधारणा
Authors(1) :-डाॅ0 उधम मौर्य वैशेषिक दर्शन सप्तपदार्थवादी है। इस में कर्म क्रिया का पर्याय है। जो द्रव्य पर आश्रित रहने वाला धर्म है। यह मूर्त द्रव्यों में रहता है। यह हमेशा किसी द्रव्य के आश्रय में रहता है। किसी गुण का आश्रय नहीं होता। इस दर्शन में कर्म के तीन लक्षण बताये गये हैं- एकद्रव्यत्व, निर्गुणत्व और संयोगविभागानपेक्षत्व। वैशेषिक दर्शन की मान्यता है कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य को, एक गुण दूसरे गुण को उत्पन्न करता है, किन्तु एक कर्म दूसरे कर्म से उत्पन्न नहीं होता है। इस दर्शन में कर्म पाँच प्रकार के माने गये हैं- उत्क्षेपण, अवक्षेपण, आकुंचन, प्रसारण, और गमन।
डाॅ0 उधम मौर्य संयोग, विभाग, क्षणिकत्व, नित्य, काम्य एवं नैमित्तिक, संयोगविभागण्वनपेक्षकारण, अदृष्टजन्य, मानसगमन एवं प्रत्यागमन। Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019 Article Preview
(भूतपूर्व शोधछात्र), दर्शन एवं धर्म विभाग, कला संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत।
Date of Publication : 2019-03-30
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Page(s) : 250-254
Manuscript Number : SHISRRJ192323
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192323