वैशेषिक दर्शन में कर्म की अवधारणा

Authors(1) :-डाॅ0 उधम मौर्य

वैशेषिक दर्शन सप्तपदार्थवादी है। इस में कर्म क्रिया का पर्याय है। जो द्रव्य पर आश्रित रहने वाला धर्म है। यह मूर्त द्रव्यों में रहता है। यह हमेशा किसी द्रव्य के आश्रय में रहता है। किसी गुण का आश्रय नहीं होता। इस दर्शन में कर्म के तीन लक्षण बताये गये हैं- एकद्रव्यत्व, निर्गुणत्व और संयोगविभागानपेक्षत्व। वैशेषिक दर्शन की मान्यता है कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य को, एक गुण दूसरे गुण को उत्पन्न करता है, किन्तु एक कर्म दूसरे कर्म से उत्पन्न नहीं होता है। इस दर्शन में कर्म पाँच प्रकार के माने गये हैं- उत्क्षेपण, अवक्षेपण, आकुंचन, प्रसारण, और गमन।

Authors and Affiliations

डाॅ0 उधम मौर्य
(भूतपूर्व शोधछात्र), दर्शन एवं धर्म विभाग, कला संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत।

संयोग, विभाग, क्षणिकत्व, नित्य, काम्य एवं नैमित्तिक, संयोगविभागण्वनपेक्षकारण, अदृष्टजन्य, मानसगमन एवं प्रत्यागमन।

  1. एकद्रव्यमगुणं संयोगविभागेण्वनपेक्षकारणमितिकर्मलक्षणम्। वैशेषिक सूत्र-1.1.17
  2. प्रशस्तपाद भाष्य- पृ0 697-98
  3. संयोगााभावे गुरूत्वात पतनम्। वैशेषिक सूत्र-5.1.4
  4. द्रवत्ववात स्पन्दनम्। वैशेषिक सूत्र-5.2.4
  5. नोदनाभिघातात् संयुक्तसंयोगाच्च पृथिव्याकर्म। वैशेषिक सूत्र-5.2.1
  6. प्रशस्तपाद भाष्य- पृ0 736
  7. प्रशस्तपाद भाष्य- पृ0 726
  8. प्रशस्तपाद भाष्य- पृ0 727
  9. उत्क्षेपणमवक्षेपणाकुंचनं प्रसारणमं गमनमिति कर्माणि। वैशेषिक सूत्र-1.1.7
  10. प्रशस्तपाद भाष्य- पृ0699
  11. प्रशस्तपाद भाष्य- पृ0700
  12. उध्र्वभाग्भिर्विभागाधोदश संयोगजनकं कर्मापक्षेपणम्। व्योमवती, पृ0 654
  13. वैशेषिक सूत्रोपस्कार, पृ0 40-41
  14. प्रशस्तपाद भाष्य- पृ0700
  15. प्रशस्तपाद भाष्य- पृ0700
  16. द्रव्याणि द्रव्यान्तरमारभन्ते, गुणाश्च गुणान्तरम्। तथा कर्म कर्म साध्यं न विद्यते। वैशेषिक सूत्र-1.1.10-11

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019
Date of Publication : 2019-03-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 250-254
Manuscript Number : SHISRRJ192323
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ0 उधम मौर्य, "वैशेषिक दर्शन में कर्म की अवधारणा", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 2, pp.250-254, March-April.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192323

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