Manuscript Number : SHISRRJ192328
व्याकरणशास्त्र में तिङ्न्त के प्राविधिक शब्दों का विवेचन
Authors(1) :-डॉ. सुभाषचन्द्र मीणा व्याकरण शास्त्र में तिङ्न्त का महत्त्वपूर्ण स्थान है, इनके बिना शब्द एवं धातु से बनने वालेपदों का निर्माण संभव नहीं है । तिङ् प्रत्यय अनेक धातु एवं शब्दों के साथ जुड़कर क्रियापदों के रुप में बनते है । क्रियापदो के निर्माण के क्रम में मूल धातुओं के साथ जुड़नेवाले ये ‘तिप्’ आदि कुल 18 प्रत्यय हैं । इनमें प्रारंभ में ‘तिप्’ प्रत्यय है और अन्त में ‘महिङ्’ प्रत्यय है । इन अठ्ठारह प्रत्ययों को एक साथ बनाने वाले सूत्र के रुप में पहले प्रत्यय ‘तिप्’ का ‘ति’ ले लिया गया और अन्तिम (18वे) प्रत्यय ‘महिङ्’ का ‘ङ्’ और दोनों मिलकर ‘तिङ्’ प्रत्यय का बोध कराते हैं ।1ये ‘तिङ्’ प्रत्यय मूल धातु के साथ जुड़ते हैं, अतः इनसे बने पदों को ‘तिङ्न्त’ कहते हैं । प्रकरण अध्याय को कहते हैं । तिङ्न्त प्रकरण में इस बात पर विचार किया गया है कि मूल धातुओं में इन प्रत्ययों के लगने से बने क्रियापदों का ‘पुरुष’ ‘वचन’ और ‘काल’ की दृष्टि मे रुप और अर्थ होता है । साह ही यहाँ परस्मैपद, आत्मनेपद, क्रियाफल आदि तकनीकी शब्दों का भी प्रयोग किया गया है । जिसमें तिबादि आदेशवाले परस्मैपदी होते है । तङ् आदेश वाले प्रत्यय आत्मनेपदी होते हैं । क्रिया को सम्पादित करने वाले क्रियाफल कहलाते हैं । तिङ् एवंशित् से भिन्न प्रत्यय आर्धधातुक कहलाते हैं । किसी भी पद को द्वित्व होनेपर पूर्वमाला पद अभ्यास संज्ञक कहलाता है । अनद्यतन अर्थ में लिङ् तथा परोक्ष में लिट् लकार का विधान किया गया है । उपर्युक्त प्राविधिक पदों में पाणिनि, जैनेन्द्र, पतञ्जलि तथा भट्टोजिदीक्षित ने भिन्न-भिन्न व्याख्या की है, अतः यहाँ तिङ्न्त प्रकरण में विभिन्न प्राविधिक शब्दों को स्पष्ट किया है ।
डॉ. सुभाषचन्द्र मीणा परस्मैपद, आत्मनेपद, अनुदात्तेत्, कर्त्रभिप्राय, क्रियाफल, आर्धधातुक, अभ्यास, अनद्यतन, परोक्षेलिट्, आमन्त्रण, अतिपत्ति अनुप्रयोग, इदित्, अत्वत्, अदादी, ऋदित् । Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019 Article Preview
सहायकाचार्य (व्याकरण विभाग), केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, क. जे. सोमैया परिसर, मुम्बई ।
Date of Publication : 2019-03-30
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Page(s) : 273-279
Manuscript Number : SHISRRJ192328
Publisher : Shauryam Research Institute
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