राजेश जोशी की कविता में समाज-समीक्षा और संघर्ष-चेतना: एक विश्लेषणात्मक अध्ययन

Authors(1) :-डाॅ. विशाल श्रीवास्तव

राजेश जोशी के कविता लोक में गृहस्थी, प्रेम, रोजमर्रा के जीवन और सम्बन्धों पर लिखी गयी तमाम कविताएँ भी हैं, जो अपने कलेवर और बयान में बेहद कोमल हैं। उनकी भाषा अपने विशिष्ट तेवर के बावजूद अत्यंत साधारण शब्दांे से बुनी हुई है, वह सड़क पर चल रहे आम आदमी की भाषा है। भारतीय शास्त्र एवं परम्परा से परिचित और बहुपठ होने के बावजूद राजेश जोशी अपनी भाषा में बेवजह की तत्समता से न केवल बचते हैं बल्कि उनकी भाषा का मिजाज़ ख़ालिस ‘हिन्दुस्तानी’ का है। यही वजह है कि वे बेहद आमफहम भाषा में अपनी बात को पाठक तक सम्प्रेषित कर पाने में सम्भव हुए हैं।

Authors and Affiliations

डाॅ. विशाल श्रीवास्तव
असि. प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजकीय महाविद्यालय, पचवस, बस्ती, उत्तर प्रदेश, भारत।

राजेश जोशी, कविता, समाज-समीक्षा, संघर्ष-चेतना, सौन्दर्य, सम्बन्ध, भारतीय, शास्त्र।

  1. नामवर सिंह: कविता के नये प्रतिमान, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 1968
  2. लक्ष्मीकान्त वर्मा: नये प्रतिमान: पुराने निकष, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, 1996
  3. राजेश जोशी: एक कवि की नोटबुक, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 2004
  4. अजय तिवारी: समकालीन कविता और कुलीनतावाद, राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली, 1994
  5. राजेश जोशी: दो पंक्तियांे के बीच, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 2000
  6. राजेश जोशी: चाँद की वर्तनी, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 2006
  7. बलदेव वंशी: आधुनिक हिन्दी कविता में विचार, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, 2002
  8. राजेश जोशी: नेपथ्य में हँसी, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 2004
  9. kavitasamay.org
  10. hindisamay.com

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019
Date of Publication : 2019-03-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 280-285
Manuscript Number : SHISRRJ192329
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ. विशाल श्रीवास्तव, "राजेश जोशी की कविता में समाज-समीक्षा और संघर्ष-चेतना: एक विश्लेषणात्मक अध्ययन ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 2, pp.280-285, March-April.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192329

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