Manuscript Number : SHISRRJ192330
गांधी जी की वर्तमान समय में प्रासंगिकता
Authors(1) :-डाॅ0 विकास चन्द्र वशिष्ठ यह अध्ययन और मनन के बाद उन्हें यह सच्चाई साफ-साफ दिखाई देनी लगी कि दुनिया के सव बड़े धर्म- मजहबों के बुनियाद सिद्धान्त एक है। राजेन्द्र बाबू के 64.50 को महात्मा गांधी स्मृति मंदिर, बम्बई के उद्घाटन के अवसर पर दिये गये भाषण का अंश - “बुद्धदेव के बाद पिछले पच्चीस-छब्बीस सौ वर्ष में भारत वर्ष में दूसरा ऐसा ऐसा कोई व्यक्ति नहीं हुआ जिसने लोगों के जीवन पर इतनी गहरी छाप डाली हो, जितनी गांधी जी ने डाली है। मेरा यह सौभाग्य रहा कि 30-31 वर्ष तक गांधी के चरणों में हरकर मैं बहुत निकट से कुछ न कुछ करता रहा। मैंने एक जगह लिखा है कि गांधी जी बहुत बड महापुरूष थे और उनके नजदीक रहकर मैं भी उतना लाभ न उठा सका जितना उनके निकट रहने वालों को उठाना चाहिए यह बात सर्वथा ठीक है मुझसे जितनी शक्ति थी उतना ही लाभ मैं उठा सका। मनुष्य में जितनी शक्ति और प्रतिभा होती है। उसके अनुसार ही वह काम करता है। किसी बीमार से डाक्टर लोग वह कहे कि फलो औषधि पौष्टिक है और अगर वे उसे उस औषधि को दे भी, पर बीमार में उसको पचाने की शक्ति न हो तो उसके लिए वह औषधि किस काम की। वह उस बीमार को लाभ नहीं पहुंचा सकती। यही बात बड़े लोगों के समागम से होती हैं जिस तरह गंगा नदी हिमालय से लेकर समुद्र तक 1500-1600 मील बराबर बहती है उसी तरह महात्मा गांधी अपनी 80 वर्ष की अवस्था तक लोगों को सिखाते गए और हमारे ऐहिक और पार लौकिक जीवन से संबंध रखने वाली बाते बताते गए। गंगा तो सब जगह होकर बहती है, मगर उससे किसी को ज्यादा लाभ मिलता है और किसी को कम । सबको बराबर लाभ नहीं मिल पाता। जिसमें जितनी शक्ति होती है वह उतना ही लाभ उससे उठाता है। कोई छोटे से छोटे में उसका जल निकालकर पी सकता है और किसी के लिए वह भी संभव नहीं होता। गांधी जी का जीवन ऐसा ही था। जिसकी जितनी शक्ति थी वह उतना लाभ गांधी जी की जीवन गंगा से हासिल करता था। मैं उनके नजदीक रकर उनकी जीवन गंगा से एक लोटा भर ही अमृत ले सका। गांधी जी जीवन आदर्श जीवन था। वह अपने जीवन से लोगों को वह दिखा गए कि किस तरह मनुष्य को अपना जीवन बनाना चाहिए। हमें यह समझा लेना चाहिए कि उन्हीं के बताए हुए आदर्श पर चलकर हम अपना और देश का भला कर सकते हैं। हमें चाहिए कि हमेशा उनके आदर्श को सामने रखकर हम आगे बढ़े गांधी जी को यहां से गए अभी बहुत दिन नहीं हुए है। शायद हमने उनसे कुछ सीख नहीं और ऐसा मालूम होता है कि बहुत कुछ सुना नहीं, उनके साथ रहकर हम उनसे बहुत दूर बने रहे। हमने उसने वहीं सीखा जो सीख सकते थे। एक कहावत है कि चिराग के चीनचे अंधेरा। वहीं कहावत यहां भी लागू होती है। हम चिराग के नीचे रहते थे और हमारा व्यक्तित्व उनके प्रकाश से ज्योतिर्मच न हो सका। भारत वर्ष के सामने आज यही सबसे बड़ी समस्या है कि गांधी जी के बताए हुए रासते पर कहा कि और बि तक चला जा सकता है और कहां तक उसके बदले में दूसरे रास्ते पर चलने में इसकी भलाई है? मेरा अपना विश्वास यह है कि भारतवर्ष के लिए ही नहीं, सारे संसार के लिए गांधी जी बताए रास्ते के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। अगर हम शांति चाहते है सुख चाहते है, सचमुच मनुष्य बनकर चाहते है तो हमे चाहिए कि हम गांधी जी के हुए मार्ग पर चलकर अपनी और साथ-साथ सारे संसार की भलाई करें। आज दुनिया में नए-नए अविष्कार हो रहे हैं। वैज्ञानिक अविष्कारों के फल आज हमकों मिल रहे। उनको देखकर हम लजुभा जाते हैं, पर इस लोभ को देखकर अक्सर मुझे डर लगता है कि कहीं हम गलत रास्ते पर न चले जाएं पहले भी ऐसा हुआ है।
डाॅ0 विकास चन्द्र वशिष्ठ Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019 Article Preview
एसोसिएट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, मेरठ काॅलेज, मेरठ। , भारत।
Date of Publication : 2019-03-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 286-293
Manuscript Number : SHISRRJ192330
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192330