Manuscript Number : SHISRRJ192333
ग्रामीण विकास स्तर एवं संधृत नियोजनः जनपद फतेहपुर, उ0 प्र0 का एक प्रतीक अध्ययन
Authors(1) :-आर0 एस0 चन्देल
ग्रामीण विकास से अभिप्राय ग्रामीण क्षेत्रों का समग्र विकास करने से है। लेकिन वर्तमान भारत में ग्रामीण विकास एक मूलभूत एवं जटिल समस्या के साथ प्रमुख उद्देश्य एवं नियोजनात्मक प्रक्रिया भी है, जिसके अन्तर्गत सम्पूर्ण ग्रामीण जनसंख्या के जीवन को प्रमुखता प्रदान किया जाता है। इस प्रक्रियान्तर्गत ग्रामीण पर्यावरण, ग्रामीण जनसंकुल विशेषतः गरीब एवं समाज के अन्य कमजोर वर्गों को लक्षित किया जाता है। राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भूगोलविदों, समाज वैज्ञानिकां, अर्थशास्त्रियां, नीतिनियोजकों, प्रशासकां और राजनीतिज्ञों द्वारा ग्रामीण समाज की संरचना, सामाजार्थिक साधनां का भू-वैन्यासिक विस्तार, नेतृत्व स्वरुप तथा जनसहभागिता के मध्य सामंजस्य स्थापित करते हुए ग्रामीण समाज के सर्वांगीण विकास करने का प्रयास किया जा रहा है, क्यांकि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बढ़ती हुई जनसंख्या एवं सीमित साधनों के मद्देनजर सम्पूर्ण राष्ट्र के विकास की कल्पना समुचित ग्रामीण विकास के अभाव में साकार नही हो सकती। भारत गाँवों का देश है यदि गाँव सम्पन्न होंगे तो देश सम्पन्न होगा, यदि गाँव विपन्न होंगें तो देश विपन्न होगा। ग्रामीण विकास के महत्व को स्पष्ट करते हुए महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘प्रत्येक ऑख से ऑसू पोछना हमारा ध्येय होना चाहिए।’ यही मूल कारण है कि हमारी विकास नीतियों, योजनाआें और राष्ट्रीय उन्नयन के विविध कार्यक्रमां में ग्रामीण विकास कार्यक्रमां का महत्व सर्वोपरि रहा है। सम्प्रति आज राष्ट्र के विकास एवं उत्थान में ग्रामीण क्षेत्रों का विकास एवं उत्थान, मूल मन्त्र सिद्ध हो रहा है।
प्रस्तुत अध्ययन का मुख्य उद्देश्य ‘जनपद फतेहपुर, उ0 प्र0 में ग्रामीण विकास’ स्तर का मापन कर संधृत सुझाव प्रस्तुत करना है। ग्रामीण विकास स्तर के मापन से स्पष्ट होता है कि अध्ययन क्षेत्र में ग्रामीण विकास अपेक्षित स्तर का नही है बल्कि असन्तुलित है परन्तु ग्रामीण विकास की पर्याप्त सम्भावनाएं निहित है। इसलिए यह आवश्यक है कि ग्रामीण विकास के प्रमुख घटकों विशेषतः कृषिगत विविधता हेतु कृषि भूमि के बेहतर उपयोग के लिए बाजार मांग तथा कृषि पारिस्थितिकीय को ध्यान में रखते संधृत नियोजन आवश्यक ही नही बल्कि अपरिहार्य भी है।
आर0 एस0 चन्देल
ग्रामीण विकास, कृषि विशिष्टीकरण, कृषिगत विविधता, जीविकोपार्जित कृषि, कृषि अनुषंगीय व्यवसाय, अवस्थापनात्मक तत्व, विकेन्द्रीकरण, संधृत, यादृच्छिक, ‘वर्गीकरण विधि‘, दोआब, अवनलिकाए। Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019 Article Preview
एसोसिएट प्र्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, भूगोल विभाग, कमला नेहरु स्नातकोत्तर महाविद्यालय तेजगाँव, रायबरेली, उ0 प्र0, भारत
Date of Publication : 2019-03-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 304-320
Manuscript Number : SHISRRJ192333
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192333