Manuscript Number : SHISRRJ19235
पातञ्जल-योग एवं नाथ-योग की प्रासंगिकता
Authors(1) :-डाॅ देवेन्द्र पटेल योग लोक प्रचलित अपनी सभी ज्ञात और साधित विधाआंे-मन्त्रयोग, लययोग, हठयोग, जपयोग, नादयोग, स्वरयोग, ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग तथा भावातीत ध्यानयोग आदि सहित भारतीय मनीषियांे की अतिअद्भुत खोज है। यह भारतीय तत्त्व चिंतन का चिनतामणि है। धरती पर रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह आस्तिक हो, चाहे नास्तिक, चाहे न्याय वैशेषिक का अनुयायी हो या पूर्वांेत्तर मीमांसा का, सनातनी हो चाहे जैन बौद्ध या सिक्ख हो, ज्ञानाश्रयी शाखा का हो या प्रेमाश्रयी, हिन्दू हो या ईसाई, मुसायी, यहूदी हो या मुहम्मदी, स्त्री हो या पुरुष, बालक हो या युवा या वृद्ध, गृहस्थ हो या सन्यासी-वैरागी, भारतीय ऋषियांे, महर्षियांे, सिद्धांे और प्रज्ञा-पुरुषांे द्वारा आविष्कृत या अवतारित और विकसित सर्वसम्प्रदाय-वर्ण लिंग आदि से निरपेक्ष योग विद्या और साधना का अधिकारी है। इस प्रकार पात´्जल या नाथयोग ही नहीं किसी भी नाम रूप् वाली (यदि वह पाषण्ड मात्र न हो तो) योग पद्धति की प्रासंगिकता सार्वभौम और सार्वकालिक स्तर पर निर्विवाद सिद्ध है। इसलिए महर्षि पत´्जलि ने योग प्रारम्भिक अंग को सार्वभौम महाव्रत बतलाया है।1 इतना ही नहीं सभी समप्रदायांे ने यद्यपि उनके दार्शनिक सिद्धान्त और इष्ट अलग-अलग है तथापि उन्होंने योगसाधना को अपने लक्ष्य तक पहुँचने का सर्वाेपरि साधन स्वीकार किया है।
डाॅ देवेन्द्र पटेल Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019 Article Preview
ग्राम-राजपुरखुर्द, पोस्ट-करैलिया, जनपद-महराजगंज, उ0प्र0।,भारत
Date of Publication : 2019-04-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 117-120
Manuscript Number : SHISRRJ19235
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ19235