Manuscript Number : SHISRRJ19242
महात्मा गांधी के दृृष्टिकोण में शारीरिक एवं मानसिक रोग निवारण में पंचतत्व उपचार की प्रासंगिकता
Authors(1) :-आरसी प्रसाद झा वर्तमान षोध का उद्येष्य है कि महात्मा गांधी के दृृष्टिकोण में शारीरिक एवं मानसिक रोग निवारण में पंचतत्व चिकित्सा की प्रासंगिकता को जाना जाए। महात्मा गांधी ने पंचतत्व की श्रेणी में आसमान, पानी, प्रकाष, पृृथ्ची (मिट््टी) और हवा को रखा। गांधीजी के अनुसार, पंचतत्व चिकित्सा प्राकृतिक धरोहरों से निर्मित, घरेलू, निःषुल्क व बिना किसी हानि की चिकित्सा पद्धति है। पंचतत्व प्राकृृतिक चिकित्सा का एक प्रकार है जो कि षारीरिक, मानसिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक रोग को दूर करता है। महात्मा गांधी ने बताया है कि पंचतत्व चिकित्सा से रोग मिट जाने के साथ ही रोगी के लिए ऐसी जीवन पद्धति का आरंभ होता है जिसमें पुनः रोग के लिए गुंजाइष ही नहीं रहती। गांधी जी का कहना है कि रात में सोने के लिए खुले आसमान में सोना चाहिए व बरसात, ठंड, आदि में हल्के कपड़े ढक कर (नाक खुला छोड़कर) सोना चाहिए। गांधीजी के दृृष्टिकोण में स्वच्छ पेय जल, स्नान, बर्फ, ठंडा व गर्म जल और भाप से भी कई बीमारी दूर होते हैं। गांधीजी ने सूर्योदय के समय लंगोट में स्नान करने, धूप सेवन व सुवह-षाम नियमित टहलने के लिए बताया। उन्होंने मिट््टी खाने, मिट््टी का लेप लगाने व मिट््टी की पट््टी बांधने से कई बीमारी का उपचार किया। गांधीजी का कहना है कि सभी लोग प्राकृृतिक हवा लें। उन्होंने सभी को हवादार और प्रकाषयुक्त कमरे बनवाने के लिए कहा। अतः इस अध्ययन का सार यह है कि गांधीजी के दृृष्टिकोण में पंचतत्वों के असंतुलन से रोग होते हैं व इन रोगों की रोकथाम, निवारण व उपचार भी पंचतत्वों में निहित हैं। वे इस पद्धिति से कई लोगों के षरीर, मन और आत्मा का इलाज किया।
आरसी प्रसाद झा आसमान, उपचार, गांधी, पंचतत्व, पानी, प्रकाष, मिट््टी, हवा Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 4 | July-August 2019 Article Preview
अनुसंधान सहयोगी (मनोविज्ञान), भारतीय मानवविज्ञान सर्वेक्षण, प्रताप नगर, उदयपुर-313001(राज.), भारत
Date of Publication : 2019-08-30
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Page(s) : 05-12
Manuscript Number : SHISRRJ19242
Publisher : Shauryam Research Institute
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