Manuscript Number : SHISRRJ19247
वैदिक वाङ्मय में शिव की अवधारणा: एक अध्ययन
Authors(1) :-दिनेश कुमार मौय विशवव्यापी शाशवत नियमों को ’ऋत’ कहते है। ’ऋततत्त्व’ ही संसार का संचालन और नियन्त्रण करते हैं। सूर्य, चन्द्र, ब्रह्माण्ड सहित समस्त संसार ऋततत्व के नियन्त्रण में हैं। वैदिक युग से लेकर आज तक हमें शिव शब्द के अनेक पर्यायवाची शब्द मिले है। वैदिक संहिताओं एवं ब्राह्मणग्रन्थों और उपनिषद में रूद्र के विकास की स्वरूप का जो परम्परा हमे मिलती है वह एक समान ही है।
दिनेश कुमार मौय ऋत, शिव, वैदिक, सूर्य, चन्द्र, ब्रह्माण्ड, रूद्र। 1. प्रत्याभिज्ञाहृदयम् - जयदेव सिंह Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 4 | July-August 2019 Article Preview
शोधच्छात्र, संस्कृत विभाग, दी0द0उ0गो0वि0वि0, गोरखपुर, भारत
2. तैत्तिरीय संहिता - 1.5.1.1 शतपथ ब्राह्मण - 6.1.3.10
3. वैदिक मैथोलाजी - मैक्डानल पृ0 - 145
4. शैवमत - डाॅ0 यदुवंशी - पृ0 1-2
5. ऋग्वेद - 1.114.1
6. ‘‘ - 1.114.10
7. ‘‘ - 2.33.10
8. अथर्ववेद - 11.2.5
9. ‘‘ - 11.2.7
10. शुक्ल यजुर्वेद - 16.28
11. ’’ ’’ - 16.29
12. निरूक्त - 12.25
13. ऋग्वेद - 2.33.9
14. ‘‘ - 2.33.7
15. ‘‘ - 1.43.4
16. अथर्ववेद - 2.27.6
17. शुक्ल यजुर्वेद - 16.1
18. ‘‘ - 19.82
19. ‘‘ - 16.41
20. ‘‘ - 3.60
21. अथर्ववेद - 6.51.1
22. ‘‘ - 6.90.1
23. ‘‘ - 3.22.2
24. सायण्यभाष्य ऋग्वेद - 11.2.12
25. श्वेताशवतरोपनिषद् - 3.2
Date of Publication : 2019-08-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 23-28
Manuscript Number : SHISRRJ19247
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ19247