Manuscript Number : SHISRRJ1925015
मीमांसा दर्शन के अनुसार वाक्यार्थ स्वरूप
Authors(1) :-डॉ॰ मधुमिता मीमांसकों का वाक्य के क्षेत्र में अवतार बहुत महत्त्वपूर्ण रहा क्ोंकि एक ओर प्राछीन मत अन्विताभिधानवाद द्वारा शब्द की स्वतन्त्र सत्ता और सामान्य वाचकता को वे नहीं मानते तो दूसरी ओर अभिहितान्वयवाद के नवीन मत से पदों की स्वतन्त्र सत्ता और वाचकता भी उन्हें स्वीकार्य है। अर्थात् अज्ञात भाषा के बोध के लिए पहला पक्ष ग्राह्य है; जबकि अभिहितान्वयवाद का नया पक्ष ज्ञात भाषा के क्षेत्र में कारगर है। हम शब्दार्थ जानते हों तभी विशिष्टार्थ के रूप में वाक्यार्थ बोध कर सकेंगे।
डॉ॰ मधुमिता भावना, साध्य, करण, इतिकर्तव्यता, आर्थी, शाब्दी, वाक्यार्थ, मीमांसा इत्यादि। Publication Details Published in : Volume 1 | Issue 3 | September-October 2018 Article Preview
A-21, बैंकमेन्स कॉलोनी, चित्रगुप्तनगर, कंकरबाग पटना, बिहार, भारत
Date of Publication : 2018-09-30
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Page(s) : 74-79
Manuscript Number : SHISRRJ1925015
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ1925015