संस्कृत वाङ्मय में राष्ट्रीय चेतना की परिकल्पना

Authors(1) :-डॉ. अश्विनी कुमार

राष्ट्रीय चेतना की परिकल्पना के विषय में कुछ विद्वानों का मानना है कि इस उद्भावना का विकास विदेशी आक्रान्ताओं के आने के तत्पश्चात् ही जागृत हुआ, किन्तु आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी ने इस कथन का खण्डन करते हुए कहते हैं कि “जो भी लोग पश्चिम की नवीन जागृति चेतना से चकित होकर भारत को उस विदेशियों का अनुयायी बनाना चाहते हैं, वे न तो अपनी राष्ट्रीय सत्ता का मर्म समझ पाते हैं और न ही राष्ट्र की वर्तमान नाड़ी गति का ज्ञान रखते हैं । उनकी इस प्रकार सोची हुई राष्ट्रीय भावना अविकसित और बहुत ही निर्जीव प्रतीत होती है ।” हमारे देश में राष्ट्रीय चेतना का विकास आदिकाल से ही ऋषि-मुनियों ने अपने स्वराष्ट्र विकास के विषय में सोंच-विचार कर निरन्तर प्रयत्नशील रहे, जिसके कारण अनेक वर्षों तक अपना राष्ट्र एक सूत्र में बधा रहा । हाँ एक बात सत्य रूप से कहा जा सकता है कि विदेशी आक्रान्ताओं के आने से भारतवासी जन समुदाय एकत्रित और संगठित होकर राष्ट्र की सुरक्षा के प्रति सचेत हो गए, जिसके कारण वे हमारी एकता को विखण्डित नहीं कर सके । आधुनिक युग में भी राष्ट्र चेतना के प्रति जन-समुदाय सजग व प्रयत्नशील होकर देश सेवा में लगा हुआ है, जिससे भारत वर्ष अपने को गौरवान्वित महसूस करता है ।

Authors and Affiliations

डॉ. अश्विनी कुमार
भूतपूर्व शोधच्छात्र, संस्कृतविभाग, कलासंकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी उत्तर प्रदेश‚ भारत।

वाङ्मय, राष्ट्रीय चेतना, स्वराष्ट्र, प्रादुर्भूत, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, उच्चादर्शों, मानवीकरणात्मक, कल्याणकारक, सृजनात्मक, राष्ट्रभावना, स्वसाहित्य, विश्वबन्धुत्व, अतिरमणीयता, स्वजन्मभूमि इत्यादि ।

  1. अथर्ववेद - 12/1/12
  2. अथर्ववेद - 9/22
  3. ऋग्वेद - 10/173/5
  4. ऋग्वेद - 10/125/2
  5. ऋग्वेद - 7/35/2
  6. ऋग्वेद - 7/35/7
  7. कठोपनिषद्, अध्याय 1/3/14
  8. विष्णु पुराण 2/3/25

Publication Details

Published in : Volume 1 | Issue 3 | September-October 2018
Date of Publication : 2018-09-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 89-92
Manuscript Number : SHISRRJ1925017
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डॉ. अश्विनी कुमार, "संस्कृत वाङ्मय में राष्ट्रीय चेतना की परिकल्पना ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 1, Issue 3, pp.89-92, September-October.2018
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ1925017

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