Manuscript Number : SHISRRJ192511
वैश्विक परिवर्तन और आधुनिक संस्कृत
Authors(1) :-डाॅ0 (श्रीमती) मधु सत्यदेव जीवन्त और प्रवाहमान साहित्य में कलात्मक सौन्दर्य के साथ युग की छवि समाहित होती है। युगबोध साहित्यकार को समाज की छवि रचना में अभिव्यक्त करने के लिए प्रेरित करता है। यही प्रेरणा उसे निर्देशित करती है कि वह समाज की समस्याओं के विभिन्न आयाम पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करे, साथ ही समाधान का संकेत भी रचना में उपस्थित हो। आधुनिक संस्कृत साहित्य की जीवन्तता का मूल्यांकन इसी दृष्टि से किया जाना चाहिए।
डाॅ0 (श्रीमती) मधु सत्यदेव आधुनिक, संस्कृत, साहित्य, कलात्मक, सौन्दय, जीवन्त, प्रवाहमान। 60-64
प्रीतिर्मुहुस्तं भजते प्रकामं गृहणाति केशेज्वहितश्रियं यः।। वासुदेवबिजय 12/24 पिनष्टिं नीतित्र्च युनक्ति दास्यं हा पारतन्त्र्यं निरयं व्यनक्ति।। वही 13/32 उपागतायां परतन्त्रतायां यशोधनानां शरणं हि मृत्युः।। वही 13/34 सूनृतवादिनी श्वासेन दुद्राव नभो विदीर्ण न्यासेन पादस्य च भूश्चकम्पे।। भवानी भारती (8) वक्षः रिथतेनैव सनातनेन शत्रून् हुताशेन दहन्नटस्व।। वही-18 योरपगृध्रणामेककवलमहहा रक्तच्युतिदिग्धभू एकं प्रेतवनं तद् यत्र न कश्चिच्दोकालापी को भ्राम्यन्नात्मा, यस्य न गेहः कोऽपि क्वापि।। शङखनाद, पृष्ठ-180 परं सत्याग्रहाद् विद्धि नास्ति तीव्रतरं बलम्।। सत्याग्रह गीता 10/35 नूनं दवाग्नेः शमने समर्थो वायुःकदाचित्त समृद्धवेगः।। सत्यदेव वाशिष्ठ-सत्याग्रह नीतिकाव्य उमयोरेकः भोगः स्वदते उदरज्वालया अन्यो दग्धः पशुवत् बीमत्सं म्रियते।। (मंजुलमयङ्कपन्तुलः) सीदन्ती सम्पदामीशत्वं चोच्द्मश्रुमुखं जनरक्तपिबम्। मातरो भगिन्यो मयेक्षिता शीलं जहतीर्वसनादि विना कणहेतोः शिशवोऽतिदुःखिताः परिवृत्रा जगतः स्थितिर्नहि। अमृत लता 22 जनसमाजविकासनियोजितं धनमिदं जगतां सुखदं मतम्।। लेनिनामृतम् 2/4 प्रवृत्रकाले कथमस्य संगति। पुरातने भद्रभवानि कार्याण्यासन्नकाले दुरितान्ययि पस्युः।। विदेशयात्रा प्रथमं विवर्जिता तदद्यकाले प्रतिभाविभूशणम् स्त्रीणां दमः शोषणनीतिचिन्ता पुराणकालेऽद्यतने यथा तथा।। अपराजितवधू महाकाव्यम् 10/13-14 डा0 पूर्णचन्द्रशास्त्री कलावटिया शब्दमानः पशुर्मया दृष्टः।। शायिका विक्रयं सुखं कुर्वन् रेलयाने पशुर्मया दृष्टः।। दुर्विपत्र्ति विधाय सर्वेषाम् साऽदृहासः पशुर्मया दृष्टः।। स्वार्थसिद्धयै स्वराष्ट्रसम्मानम् हन्त पणयन् पशुर्मया दृष्टः।। मत्तवारणी Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 5 | September-October 2019 Article Preview
एसोसिएट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, दी0द0उ0 गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर,उŸार प्रदेश, भारत
Date of Publication : 2019-09-30
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Page(s) : 60-64
Manuscript Number : SHISRRJ192511
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192511