Manuscript Number : SHISRRJ192519
भक्तिकाल में अस्पृश्यता
Authors(1) :-डाॅ. गुंजन त्रिपाठी
आंदोलन हो या काव्य-प्रवृŸिा, सब के उद्भव के कुछ प्रेरणा-स्रोत होते हैं, ऐतिहासिक-सामाजिक पृष्ठभूमि होती है। भारत में मध्यकाल में अचानक बिजली की चमक की तरह भक्ति-आंदोलन का उदय हो गया, जिसके बारे में कोई नहीं जानता कि उसका कारण क्या था। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि देने की कोशिश कीदृ‘‘देश में मुसलमानों का राज्य प्रतिष्ठित हो जाने पर हिन्दू जनता के हृदय में गौरव, गर्व और उत्साह के लिए अवकाश न रह गया। उसके सामने ही देव मंदिर गिराये जाते थे, देवमूर्तियां तोड़ी जाती थीं और पूज्य पुरुषों का अपमान होता था और वे कुछ भी नहीं कर सकते थे। ण्ण्ण्ण् अपने पौरुष से हताश अस्पृश्यता के लिए भगवान की भक्ति और करुणा की ओर ध्यान ले जाने के अतिरिक्त दूसरा कारण ही क्या था?’’ भक्तिकाल में अस्पृश्यता जैसी वैचारिकी प्रभावी स्थिति में थी जो व्यक्ति के उन मूलभूत मानवीय अधिकारों को प्रतिबंधित करती थी जिससे वह सामान्य जीवन का परिप्रेक्ष्य प्राप्त कर पाता। उस समय प्रत्येक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से असमान प्रस्थिति में था। यह असमानता केवल प्रतिष्ठा और परिसम्पŸिायों के स्वामित्व तक ही सीमित नहीं थी, अपितु जाति विशेष का सदस्य होने के नाते वह मानवीय अधिकारों से भी वंचित था जिसका वह अधिकारी था।
डाॅ. गुंजन त्रिपाठी
अस्पृश्यता, मानवीय अधिकार, पृष्ठभूमि, उद्भव, अपमान आदि। Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 5 | September-October 2019 Article Preview
IN/5C, तिलक नगर, अल्लापुर, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश, भारत।
Date of Publication : 2019-10-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 112-116
Manuscript Number : SHISRRJ192519
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192519