Manuscript Number : SHISRRJ192521
भवभूति का भाव एवं भाषागत वैशिष्ट्य का अनुशीलन
Authors(1) :-इन्दल भवभूति का काव्य प्रकर्ष भी समुन्न्ात कोटि का है। नाटकीय दृष्टि से भले ही उन्हें वह सफलता न प्राप्त हुई हो जो कालिदास या शूद्रक को प्राप्त है पर काव्य गुण की दृष्टि से भवभूति के नाटकों का महत्त्व कथमपि न्यून नहीं हैं। प्रो0 एस0के0 डे0 के अनुसार कालिदास के उत्तरवर्ती नाटककारों में कात्य प्रकर्ष की दृष्टि से नाटककार भवभूति आगे नहीं हैं।4 काव्य धारा उनके सभी नाटकों में प्रवाहित हो रही है विशेषकर गीति पद्यों में जो सभी नाटकों में समान रूप से उपलब्ध है। वे मानव-भावनाओं के कवि हैं, जिनकी बहुरूपता में उनकी प्रवृत्ति विश्राम पाती है मानव प्रकृति की उन्हें महान परख है। साथ ही प्रकृति के रूप के दर्शन की भी उनमें क्षमता है।
इन्दल भवभूति, भाव, भाषागत, काव्य, संस्कृत, साहित्य, नाटक। Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 5 | September-October 2019 Article Preview
पूर्व शोधच्छात्र, संस्कृत विभाग, बी0आर0डी0बी0डी0पी0जी0 काॅलेज, आश्रम बरहज देवरिया, उत्तर प्रदेश,भारत।
Date of Publication : 2019-10-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 122-125
Manuscript Number : SHISRRJ192521
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192521