Manuscript Number : SHISRRJ19253
गीता में प्रतिपादित यज्ञ का महत्व
Authors(1) :-हंसराज जोशी श्रीमद्भगवद्गीता आनन्दचिद्घन, षडैश्वर्यपूर्ण, चराचरवन्दित, परमपुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण की दिव्य वाणी है। यह अनन्त रहस्यों से पूर्ण है। परम दयामय भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से ही किसी अंश में इसका रहस्य समझ में आ सकता है। इसमें सम्पूर्ण वेदों का सार संग्रह किया गया हैं। इसकी संस्कृत सरल एवं सुन्दर है, थोडा सा अभ्यास करने से मनुष्य उसको सहज ही समझ सकता है। परन्तु इसका आशय इतना गम्भीर है कि आजीवन निरन्तर अभ्यास करते रहने पर भी उसका अन्त नहीं आता। प्रतिदिन नये–नये भाव उत्पन्न होते रहते हैं, इसमें यह सदैव नया बना रहता है। भगवान् ने श्रीमद्भगवद्गीता रूप एक ऐसा अनुपमेय शास्त्र कहा है कि जिसमें एक भी शब्द सदुपदेश से खाली नहीं है। श्रीवेदव्यास जी ने महाभारत में गीता का वर्णन करने के उपरान्त कहा है
हंसराज जोशी Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 5 | September-October 2019 Article Preview
शोधार्थी, चलभाष, भारत
Date of Publication : 2019-09-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 07-10
Manuscript Number : SHISRRJ19253
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ19253