संशय से निश्चयात्मक ज्ञान की अवधारणा : ( अद्वैतवेदान्तदर्शन के सन्दर्भ में )

Authors(1) :-बनास कुमारी मीणा

वैदिक काल से ही अनेक ऋषियों द्वारा निरन्तर ज्ञान के विषय पर चर्चा की गयी है और उस सत्य तत्त्व की खोज में वेद, आरण्यक, ब्राह्मण व उपनिषद् जैसे शास्त्र समाज में आये। भारतीय दर्शन भी उसी सत्य का दूसरा नाम है। अतः सत्य को देखना या साक्षात्कार करना या साक्षात् अनुभव करना ही दर्शन कहलाता है। उत्पत्ति की दृष्टि से philo+logos यहाँ philo का तात्त्पर्य है बुद्धि तथा logos का अर्थ है ज्ञान अर्थात् बौद्धिक ज्ञान ही दर्शन है।[1] दर्शन को एच.एम.भट्टाचार्य इसप्रकार बताते है कि-“The world philosophy comes from the lover of wisedom unlike the sophists-the wise men… So in india philosophy arose from the deeper needs of spiritual life….”[2] अर्थात् भारतीय दर्शन आध्यात्मिक जीवन का सार है क्योंकि इसकी उत्पत्ति आध्यात्मिक असंतोष से हुई है। [1] ज्ञान मीमांसा का समीक्षात्मक विवेचना. प्रो. सोहन राज तातेड, पॄ. ७ [2] उपरोक्त

Authors and Affiliations

बनास कुमारी मीणा
शोध-निर्देशक- प्रो. राम नाथ झा, संस्कृत एवं प्राच्य विद्या संस्थान, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली ११००६७

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 6 | November-December 2019
Date of Publication : 2019-12-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 73-83
Manuscript Number : SHISRRJ192612
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

बनास कुमारी मीणा, "संशय से निश्चयात्मक ज्ञान की अवधारणा : ( अद्वैतवेदान्तदर्शन के सन्दर्भ में ) ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 6, pp.73-83, November-December.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192612

Article Preview