संस्कृत पत्र-पत्रिका का महत्त्व

Authors(1) :-डॉ. बिभाष चन्द्र

संस्कृत पत्र-पत्रिकाओं का महत्त्व अवर्णनीय है| किसी भी भाषा की पत्र-पत्रिका नवीन विचारों के सूत्रपात में, राष्ट्रीय भावनाओं के विकास में, भाषा के साहित्य विकास में, सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन में, सहायक होती है| संस्कृत की दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, अर्धवार्षिक तथा वार्षिक पत्र -पत्रिका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मानव की ज्ञान-पिपासा को शान्त करती है। इन पत्र- पत्रिकाओं में साहित्य के विविध आयाम यथा – वार्ता, संस्कृत गीत, नाटक, गद्यात्मक लेख, समालोचना, व्यंग्य, महाकाव्य, खंडकाव्य, कथा, चम्पू, लघुकथा, प्रहेलिका आदि स्थायी स्तंभ के रूप में सुनियोजित रहते है। यद्यपि संस्कृत में दैनिक या साप्ताहिक पत्रिका नगण्य है, फिर भी संस्कृत पत्र-पत्रिका जन-जागरण में सर्वोपरि है।

Authors and Affiliations

डॉ. बिभाष चन्द्र
प्रशक्षित स्नातक शिक्षक (संस्कृत), केंद्रीय विद्यालय क्रम संख्या–2‚गया बिहार‚ भारत।

साहित्य , पत्र-पत्रिका , संपादक, प्रकाशन, दार्शनिक, धार्मिक, अभिव्यक्ति, रचना, समालोचना |

  1. मंजूषा वर्ष 1, अंक 4, पृ. 53.
  2. मंजुभाषिणी वर्ष 1, अंक 1.
  3. मित्रगोष्ठी वर्ष 3, अंक 8.
  4. दिव्यज्योतिः वर्ष 1, अंक 12, पृ. 12.
  5. सूर्योदयः वर्ष 8, अंक 2-3.
  6. मधुरवाणी वर्ष 12, अंक 1.

Publication Details

Published in : Volume 1 | Issue 4 | November-December 2018
Date of Publication : 2018-11-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 126-129
Manuscript Number : SHISRRJ192658
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डॉ. बिभाष चन्द्र, "संस्कृत पत्र-पत्रिका का महत्त्व ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 1, Issue 4, pp.126-129, November-December.2018
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192658

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