Manuscript Number : SHISRRJ192670
न्याय-वैशेषिक दर्शन में कारणतावाद
Authors(1) :-डाॅ0 उधम मौर्य न्याय-वैशेषिक दर्शन कार्य-कारण के सिद्धान्त के रूप में असत्कार्यवाद को मानते हैं। इनके अनुसार कार्य द्रव्य अपने कारण के अतिरिक्त एक नवीन वस्तु है। केवल अपने अवयवों का संघातमात्र नहीं, अपितु एक पृथक प्रारम्भ है। जैसे तन्तु में पट पहले से नहीं रहता है, अपितु उसकी उत्पत्ति होती है। किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि ये कार्य को असत् मानते हैं या असत् से सत् की उत्पत्ति मानते है। अपितु इनका मत है कि जो पहले असत् था या जिसका प्रागभाव था उसकी उत्पत्ति हुई। न्याय-वैशेषिक दर्शन में कारण तीन प्रकार का माना गया है- समवायि, असमवायि और निमित्त कारण। जिस द्रव्य में समवाय-सम्बन्ध से कार्य की उत्पत्ति होती है, वही द्रव्य का समवायी-कारण है। समवायि-कारण में समवेत होकर कार्य की उत्पत्ति होती है और वह कार्य को उत्पन्न करके भी कार्य के साथ-साथ रहता है। समवायि-कारण में प्रत्यासन्न एवं कार्योत्पादन में अवधृत-सामथ्र्य कारण असमवायि कारण होता है।
डाॅ0 उधम मौर्य असत्कार्यवाद, सत्कार्यवाद, क्षणिकवाद, संघातमात्र, प्रागभाव, प्रत्यासन्न एवं कार्योत्पादन । Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 1 | January-February 2020 Article Preview
भूतपूर्व शोधछात्र, दर्शन एवं धर्म विभाग, कला संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी,उत्तर प्रदेश, भारत।
Date of Publication : 2020-01-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 155-159
Manuscript Number : SHISRRJ192670
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192670