Manuscript Number : SHISRRJ192675
दमा रोग में योग की भूमिका
Authors(1) :-डॉ हेमंत शर्मा दमा अथवा अस्थमा एक आम तथा काफी कष्टप्रद रोग है। जिसकी विशेषता बार-बार फेफड़ों की श्वसननलियों का आकुंचन होना है। जिससे सांस लेने में तकलीफ, दम घुटने की अनुभूति तथा खांसी इत्यादि लक्षण उत्पन्न होते हैं। श्वास वायु के संकरीश्वासनलियोंमें अधिक वेग से प्रवेश करने पर सिटी की भांति स्वर उत्पन्न होते हैं। जिसे व्हीजिंग कहते हैं श्वास नालिकाए संकुचित तथा अवरुद्ध हो जाती है। इस अवरोधन का कारण अत्यधिक मात्रा में गाढ़े म्यूकस का स्त्राव होता है। दमा का दौर कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों या दिनों तक भी चल सकता है। और रोगी को शारीरिक मानसिक तथा भावनात्मक रूप से परिकलान्तअवस्था में छोड़ जाता है।जिसे सतत् दमा या स्टेटस अस्थमेटिक्स कहते हैयहरोगी के लिए जानलेवा सिद्ध हो सकता है। भारत में 10 लाखअस्थमा के मरीज है। सभी आयु के 5 से 10% मरीज निकलते है। अस्थमा बहुत हल्की हल्की या इतनी अधिक होती है। कि आप आपकी दिनचर्या में भी समस्याएं आती है। यह कुछ कुछ मरीजों में जीवन घातक भी हो सकता है। प्राचीन कहावत है कि दमादम के साथ ही जाता है। आधुनिक युग में विशेषकर योग चिकित्सा में यह रोग असाध्य नहीं रहा।अतः हम कह सकते हैं कि दमा दम के साथ नहीं जाता यह रोगश्वसन तंत्र से संबंधित है। जो मुख्यतः ठंडे स्थानों,धूल-कारखानों इत्यादि स्थानों पर होता है। दमा को मनोदैहिकरोग माना जाता है।
डॉ हेमंत शर्मा योगासन प्राणायाम ध्यान योगिक आहार योगिक विश्राम Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 6 | November-December 2019 Article Preview
सहायक प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष योग विभाग, चोइथराम कॉलेज ऑफ़ प्रोफेशनल स्टडीज इंदौर,भारत।
Date of Publication : 2019-11-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 149-155
Manuscript Number : SHISRRJ192675
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192675