समकालीन कला: एक समीक्षात्मक अध्ययन

Authors(1) :-डाॅ. संतोष बिंद

‘आधुनिक कला समीक्षकों ने बहुधा एक आशंका व्यक्त की है कि आधुनिकता के निरन्तर बढ़ने प्रभाव से लोक कलाएँ टूटने की स्थिति में है। इस सन्दर्भ मंे दो तथ्य बिल्कुल स्पष्ट है, पहला यह कि लोककला में अद्भुत जीवनीशक्ति होती है इसी से वह अतीत के इतिहास में टिकी रहती है और आज तक जीवित है और दूसरा यह कि उसका मानव मन से सहज रिश्ता है तथा लोक ‘जीवन से अभिन्नता’ का, मेरी समझ में ये दोनों शक्तियाँ इतनी अमिट है कि लोक कलाओं के विनष्ट होने का खतरा एक कल्पना सी लगती है जब तक लोक है, लोक संस्कृति है और लोकमूल्य है।

Authors and Affiliations

डाॅ. संतोष बिंद
प्रवक्ता, राजकीय बालिका इंटर काॅलेज, हुसैनगंज, फतेहपुर, उत्तर प्रदेश, भारत।

समकालीन, कला, आधुनिक, इतिहास,मानव, शिल्प, लोक,संस्कृति।

  1. सौन्दर्य बोध एवं भारतीय रूपंकर कला, शिव कुमार शर्मा (कला त्रैमासिक, सौन्दर्य बोध विशेषांक) अक्टूबर-दिसम्बर 2002, अंक- 31, पृ0सं0 11
  2. जनता की कला के मायने और सन्दर्भ, डाॅ0 ज्योतिष जोशी, पृ0सं0 20
  3. समकालीनता के नये अर्थ, अवधेश अमन, समकालीन कला, अंक-17, मई-1996, पृ0सं0 48
  4. भारतीय चित्रकला, वाचस्पति गैरोला, पृ0सं0 287
  5. हमारी कला, उनकी कला, सुरेश सलिल, कला दीर्घा, अप्रैल 2006, वर्ष-6, अंक-12, पृ0सं0 33
  6. जनता की कला के मायने और सन्दर्भ, डाॅ0 ज्योतिष जोशी (कला दीर्घ अंक-12, पृ0सं0 20)
  7. समकालीन भारतीय कला, ममता चतुर्वेदी, पृ0सं0 135
  8. समकालीन भारतीय कला, ममता चतुर्वेदी, पृ0सं0 134
  9. कला संस्कृति और मूल्य, डाॅ0 सुरेन्द्र वर्मा, पृ0सं0 07
  10. वर्तमान भारतीय कला और उसके दर्शक, डाॅ0 राधा कमल मुखर्जी, (कला त्रैमासिक से श्रेष्ठ रचनाओं का संकलन), पृ0सं0 4
  11. भारतीय कला सम्पदा और आज उसकी प्रासंगिकता, पी0चन्द्र विनोद, कला त्रैमासिक जुलाई से दिसम्बर-2001, संयुक्तांक-27
  12. समकालीन कला और समीक्षा की चुनौतियाँ, सुशील त्रिपाठी, कला त्रैमासिक, अंक-32, पृ0सं0 42
  13. भारतीय कला सम्पदा और आज उसकी प्रासंगिकता, पी0चन्द्र विनोद, पृ0सं0 21 (कला त्रैमासिक-संयुक्तांक 27
  14. भारतीय कला सम्पदा और आज उसकी प्रासंगिकता, पी0चन्द्र विनोद, पृ0 21, कला त्रैमासिक संयुक्तांक-27
  15. समसामयिक भारतीय कला परिवेश, रामकुमार, पृ0सं0 170, कला चिंतन (कला त्रैमासिक से श्रेष्ठ रचनाओं का संकलन)
  16. भारतीय कला सम्पदा और आज उसकी प्रासंगिकता, पी0चन्द्र विनोद, पृ0सं0 21, कला त्रैमासिक, जुलाई से दिसम्बर 2001, संयुक्तांक 27
  17. सौन्दर्य बोध एवं भारतीय रूपंकर कला, शिवकुमार शर्मा, कला त्रैमासिक, अक्टूबर-दिसम्बर 2002, अंक-31
  18. लोक कलाओं में उर्जा की संजीवनी, प्रो0 नर्मदा प्रसाद गुप्त (भारतीय लोक कलाओं के विविध आयाम- सम्पादक अयोध्या प्रसाद गुप्त, ‘कुमुद’), पृ0सं0 230
  19. भारतीय कला सम्पदा और आज उसकी प्रासंगिकता, पी0चन्द्र विनोद, पृ0सं0 20, कला त्रैमासिक 2001, संयुक्तांक-27
  20. लोककलाओं में उर्जा की संजीवनी, प्रो0 नर्मदा प्रसाद गुप्त ‘भारतीय लोककलाओं के विविध आयाम’, सम्पादक अयोध्या प्रसाद गुप्त, ‘कुमुद’ पृ0सं0 230

Publication Details

Published in : Volume 1 | Issue 4 | November-December 2018
Date of Publication : 2018-11-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 169-174
Manuscript Number : SHISRRJ192684
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ. संतोष बिंद, "समकालीन कला: एक समीक्षात्मक अध्ययन ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 1, Issue 4, pp.169-174, November-December.2018
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192684

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