संस्कृत वाङ्मय में वैज्ञानिक संचेतना: साहित्य के परिप्रेक्ष्य में बौद्ध कालीन: काशी, वाराणसी, सारनाथ

Authors(1) :-वर्तिका मिश्रा

वास्तव में संस्कृत समस्त भाषाओं की जननी है। जिस प्रकार माँ में उदारीकरण की प्रवृत्ति होती है, उसी प्रकार संस्कृत ने विश्व के प्रत्येक ज्ञान को अपने अंग में समेट कर पोषित व संवर्द्धित किया है। निःसंशय, संस्कृत-वाङ्मय वैज्ञानिक संचेतना का आदि-संवाहक रहा है व वर्तमान तथा भविष्य में भी रहेगा।14 किन्तु साहित्य ने विज्ञान के इस जटिल स्वरूप को सहजता व सरलता के आवरण से आवृत्त कर आकर्षक व बोधगम्य ही बनाया है।

Authors and Affiliations

वर्तिका मिश्रा
यूजीसी नेट जेआरएफ, संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज।,भारत

विज्ञान, चुम्बकीय-शक्ति, अवितत्त्व, वास्तु-विज्ञान, पुरीष्य अग्नि, सौर ऊर्जा।

  1. हिन्दी साहित्य सम्मेलन पत्रिका (त्रैमासिक) भाग-79, संख्या-3 सम्पादक डाॅ0 भगवती प्रसाद शुक्ल।
  2. मनुस्मृति-चैखम्बा संस्कृत प्रतिष्ठान, वाराणसी, पृ0सं0-59
  3. ऋग्वेद- 1/115/1
  4. यजुर्वेद- 11.32
  5. ऋग्वेद- 1/163/2, यजुर्वेद- 29.13
  6. बृहदारण्यकोपनिषद्- (3/9/28)
  7. भामह-काव्यालंकार।
  8. नन्दिकेश्वरकाशिका- 1
  9. महाभारत- (1/62/53)
  10. संस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास- डाॅ0 कपिल देव द्विवेदी।
  11. अभिज्ञानशाकुन्तलम्-4/2 (चतुर्थ अंग/द्वितीय श्लोक सं0)
  12. भवभूति प्रणीत उत्तररामचरितम्-6/12 (षष्ठअंक/द्वादश श्लोक सं0)
  13. संस्कृत में विज्ञान एवं वैज्ञानिक तत्त्व, सम्पादक- डाॅ0 हरिदत्त शर्मा।
  14. वेदों में विज्ञान- डाॅ0 कपिलदेव द्विवेदी।

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 3 | May-June 2019
Date of Publication : 2019-05-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 25-29
Manuscript Number : SHISRRJ193313
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

वर्तिका मिश्रा, "संस्कृत वाङ्मय में वैज्ञानिक संचेतना: साहित्य के परिप्रेक्ष्य में बौद्ध कालीन: काशी, वाराणसी, सारनाथ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 3, pp.25-29, May-June.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ193313

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