Manuscript Number : SHISRRJ193314
आचार्य शारदातनय के संदर्भ में नृत्य की प्रासंगिकता
Authors(1) :-अमित सिंह संस्कृत नाट्य साहित्य का विकास क्रमशः वैदिककाल से ही प्रारंभ हो गया था। संस्कृत के महान नाटककार कालिदास ने अपने नाटक ‘मालविकाग्निमित्र’ में अत्यन्त मनोहर नृत्य-अभिनय का उल्लेख किया है। वह चित्र अपने में इतना प्रभावशाली, रमणीय और सरस है कि समूचे प्राचीन साहित्य में अप्रतिम माना जाता है। हमारे यहाँ नाटक और रंगमंच का उदय ही धार्मिक कृत्य, धार्मिक अनुष्ठान के रूप में हुआ था। इसलिए उसका स्वरुप अनुष्ठानपरक है। पूर्वरंग की सारी प्रक्रिया में एक सम्पूर्ण विधान है-प्रत्याहर से से लेकर प्ररोचना आदि तक इन्द्रध्वज आदि सारा विधान धार्मिक और अनुष्ठानपरक है इस अनुष्ठानिक वातावरण की सृष्टि कई नाट्यरूढ़ियों और धार्मिताओं के आधार पर की जाती है। नाट्यशास्त्र में भरतमुनि ने इसीलिए कहा है कि यह नाट्य तो ‘पंचमवेद’ है जिसमें कहीं धर्म है, कहीं क्रीड़ा, कहीं अर्थ, कहीं शान्ति...य़ह नाट्य-रस, भाव, कर्म तथा क्रियाओं के अभिनय द्वारा लोक में सबको उपदेश देने वाला है। इसीप्रकार आचार्य शारदातनय के मतानुसार भी नृत्य भावाश्रित होता है और नृत्त भावों से रहित । वे नृत्त को रसाश्रित भी मानते हैं। नृत्त रसात्मक इसलिए क्योंकि इसमें वाक्यार्थ रूप अभिनय (वाचिक अभिनय की सत्ता) पाया जाता है जबकि नृत्य में भावों का अनुकरण करते हुए गात्र-विक्षेपण के बल पर पदार्थ का अभिनय होता है।
अमित सिंह वैदिककाल, ‘मालविकाग्निमित्र’, अनुष्ठानपरक, हर्षोल्लास, प्रेक्षणीय, भावप्रकाशन, अभिनयदर्पण, नाट्यशास्त्र| १.अथर्ववेद, 4.37.7 २.दशरूपकम् 1.9 (अवलोक टीका), पृ. 5 ३.अभिनयदर्पण, 16 ४. वही, 15 ५.दशरूपकम्, 1.9 ६ संगीतरत्नाकर, 4.27 ७.भावप्रकाशनम्, 1.9 ८.वही, 10.77 ९.अभिनयदर्पण, 2 १०.नाट्यशास्त्रम्, 4.13 ११.भावप्रकाशनम्,10.102 १२.भावप्रकाशनम्,10.83 38 १३. नाट्यशास्त्रम् ,18.183–184 १४. भावप्रकाशनम्,10.84 १५. वही, 10.84 १६. भावप्रकाशनम्, 10.92 १७. नाट्यशास्त्रम्, 4.266-268 १८.अभिनयदर्पण, Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019 Article Preview
शोधच्छात्र, डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय,
फैजाबाद,भारत
Date of Publication : 2019-01-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 203-207
Manuscript Number : SHISRRJ193314
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ193314