रघुवंश महाकाव्य में काव्य और रस के बीच के तुलनात्मक परिशीलन का अध्ययन

Authors(1) :-मनोज कुमार सिंह

काव्य का सामान्य अर्थ है ‘कविकृति’ । ‘कवि’ शब्द में ‘ण्यत्’ प्रत्यय के योग से ‘काव्य’ शब्द निष्पÂ होता है । कवि-मानस में जन्म-जन्मान्तर से संचित संस्कार जब समुचित अवसर पाकर अकस्मात् स्वतः शब्दार्थमय रूप में प्रस्फुटित हेाता है तो उसे काव्य की संज्ञा दी जाती है । यह केवल शुष्क शब्दार्थ-युगल नहीं होता, अपितु कवि की नवनवोमेषशालिनी प्रतिभा से अन्वित होने के कारण इसमें कुछ अलौकिक गुण निहित होते हैं । यह काव्य एक ओर कवि प्रतिभा का परिचायक होता है तो दूसरी ओर तत्कालीन सामाजिक जीवन का प्रत्यायक भी । ‘काव्य क्या है ?’ इसे एक निश्चित रूप में बतलाना असंभव-सा है । प्रत्येक युग में काव्य का स्वरूप बदलता रहा है । विद्वानों की एतद् विषयक मान्यता परिवर्तित होती रही है । प्रत्येक युग का कवि अपने समय के अनुसार तथा जन-सामान्य की माँग के अनुसार काव्य की रचना करता है । जन सामान्य की चिन्तन-धारा कवि की कारयित्री प्रतिभा तथा प्रचलित परम्पराओं में भिÂता होने के कारण प्रत्येक युग में काव्य का स्वरूप स्थिर नहीं रह पाता । अतएव भिÂ-भिÂ युगों के काव्यलक्षणकारों ने अपने-अपने युग की मान्यताओं के अनुसार काव्य का लक्षण निर्धारित किया है ।

Authors and Affiliations

मनोज कुमार सिंह
C.204, पुष्पांजलि इन्क्लेव, उत्तरी मंदिरी, पटना, बिहार,भारत।

नवनवोमेषशालिनी, काव्य-लक्षण, कविकृति, कवि मानस, शब्दार्थमय

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019
Date of Publication : 2019-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 228-241
Manuscript Number : SHISRRJ193319
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

मनोज कुमार सिंह, "रघुवंश महाकाव्य में काव्य और रस के बीच के तुलनात्मक परिशीलन का अध्ययन", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 1, pp.228-241, January-February.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ193319

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