विशिष्टाद्वैत वेदान्त में आचार्य परम्परा

Authors(1) :-भावना शुक्ला

आलवार युग के पश्चात् भक्ति आन्दोलन के युग में आचार्य युग का आरम्भ नवीं शताब्दी हुआ। आलवार ईश्वर प्रेरित थे तथा अर्गीयसों की ईश्वरीय प्रेरणा विद्वत्ता एवं पाण्डित्य से प्रभावित थी। इन संस्कृत विद्वानों का तमिल जनता में विष्णु भक्ति का प्रचार-प्रसार करने में विशेष योगदान रहा है। इन्हें ही अर्गीयस् अथवा आचार्य की संज्ञा दी जाती है। इन्होंने आलवारों की भक्ति के साथ ही वेद प्रतिपादित ज्ञान और कर्म का अद्भुत समन्वय किया। इस प्रकार तमिलवेद (नालाभिरदिव्यप्रबन्धम् अथवा द्रविड़वेद) और संस्कृतवेद के मध्य समन्वय स्थापित करने के ही कारण इन्हें ‘उभयवेदान्ती’ की संज्ञा भी दी जाती है। उस समय इन आचार्यों के पास सबसे बड़ी समस्या थी ‘मायावाद का खण्डन’ करना। क्योंकि मायावाद का खण्डन किए बिना ‘भक्तिवाद’ की प्रतिष्ठा नहीं की जा सकती थी। इन्होंने अपने तर्कों द्वारा मायावाद का प्रबल खण्डन किया। इनका प्रधान लक्ष्य ‘भक्ति’ तथा ‘प्रपत्ति’ अथवा ईश्वरशरणागति’ करना था। ‘श्री’ के द्वारा प्रवर्तित होने से यह वैष्णव मत ‘श्री वैष्णव मत’ कहलाया।

Authors and Affiliations

भावना शुक्ला
शोधच्छात्रा, संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद,भारत

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 3 | May-June 2019
Date of Publication : 2019-05-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 18-24
Manuscript Number : SHISRRJ19332
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

भावना शुक्ला, "विशिष्टाद्वैत वेदान्त में आचार्य परम्परा", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 3, pp.18-24, May-June.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ19332

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