Manuscript Number : SHISRRJ19333
विशिष्टाद्वैतवेदान्त में आलवार परम्परा
Authors(1) :-भावना शुक्ला दक्षिण भारत में भागवत धर्म को परम्परा में लाने एवं लोक प्रचलित करने का श्रेय आलवारों को दिया जाता है। आलवार तमिल भाषा का शब्द है जिसका अभिप्राय है- ‘अध्यात्मज्ञानरूपी समुद्र में गहराई से गोता लगाने वाला व्यक्ति।’ आलवार सन्त भगवान् विष्णु के सच्चे प्रेमी उपासक थे। इनके जीवन का एकमात्र व्रत था- भगवान् विष्णु के विशुद्ध प्रेम में स्वतः लीन होना तथा अपने उपदेशों के माध्यम से दूसरों के हृदय में भी भक्ति की सरिता प्रवाहित करना। इनकी मातृभाषा तमिल (द्राविड़ी) थी तथा इन्होंने तमिल भाषा में ही सहस्रों पद्यों की रचना कर जनसामान्य के हृदय में भक्ति की सरिता प्रवाहित कर दी। आलवारों का उद्घोष था कि भगवान् की भक्ति का अधिकार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, बालक, बृद्ध तथा स्त्री आदि सभी जीवों को समानरूप से है। आलवारों में दक्षिण की मीरा कहलाने वाली आलवार सन्त ‘आण्डाल’ अथवा गोदा थी, जबकि ‘मुनिवाहन अथवा योगवाहन’ अथवा तिरूप्पन अन्त्यज माने जाते हैं, वे भी महान् आलवार सन्त थे।
भावना शुक्ला Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019 Article Preview
शोधच्छात्रा, संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद,भारत
Date of Publication : 2019-01-30
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Page(s) : 195-202
Manuscript Number : SHISRRJ19333
Publisher : Shauryam Research Institute
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