विशिष्टाद्वैतवेदान्त में आलवार परम्परा

Authors(1) :-भावना शुक्ला

दक्षिण भारत में भागवत धर्म को परम्परा में लाने एवं लोक प्रचलित करने का श्रेय आलवारों को दिया जाता है। आलवार तमिल भाषा का शब्द है जिसका अभिप्राय है- ‘अध्यात्मज्ञानरूपी समुद्र में गहराई से गोता लगाने वाला व्यक्ति।’ आलवार सन्त भगवान् विष्णु के सच्चे प्रेमी उपासक थे। इनके जीवन का एकमात्र व्रत था- भगवान् विष्णु के विशुद्ध प्रेम में स्वतः लीन होना तथा अपने उपदेशों के माध्यम से दूसरों के हृदय में भी भक्ति की सरिता प्रवाहित करना। इनकी मातृभाषा तमिल (द्राविड़ी) थी तथा इन्होंने तमिल भाषा में ही सहस्रों पद्यों की रचना कर जनसामान्य के हृदय में भक्ति की सरिता प्रवाहित कर दी। आलवारों का उद्घोष था कि भगवान् की भक्ति का अधिकार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, बालक, बृद्ध तथा स्त्री आदि सभी जीवों को समानरूप से है। आलवारों में दक्षिण की मीरा कहलाने वाली आलवार सन्त ‘आण्डाल’ अथवा गोदा थी, जबकि ‘मुनिवाहन अथवा योगवाहन’ अथवा तिरूप्पन अन्त्यज माने जाते हैं, वे भी महान् आलवार सन्त थे।

Authors and Affiliations

भावना शुक्ला
शोधच्छात्रा, संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद,भारत

  1. वाचस्पति गैरोला विरचित भारतीय धर्म शाखाएँ और उनका इतिहास, पृ0 360
  2. आचार्य बलदेव उपाध्याय विरचित वैष्णव सम्प्रदायों का साहित्य और सिद्धान्त, पृ0 146
  3. आचार्य बलदेव उपाध्याय विरचित वैष्णव सम्प्रदायों का साहित्य और सिद्धान्त, चैखम्बा अमरभारती प्रकाशन, वाराणसी, पृ0 147-148
  4. आचार्य बलदेव उपाध्याय, वैष्णव सम्प्रदायों का साहित्य और सिद्धान्त, चैखम्बा अमरभारती प्रकाशन, वाराणसी, पृ0 148
  5. विष्वग्सेन का विष्णु के अनुचरों में वहीं स्थान है, जो शिव के अनुचरों में गणों के अधिपति गणेश का। द्रष्टव्य - डा. एस.एन. दास गुप्त विरचित ‘भारतीय दर्शन का इतिहास, भाग-3, पृ.-56
  6. कल्याण के सप्ता{ में इस सन्दर्भ में लेख प्रस्तुत किया गया है।
  7. आचार्य बलदेव उपाध्याय विरचित वैष्णव सम्प्रदायों का साहित्य और सिद्धान्त, पृ0 150
  8. मुकुन्दमाला के दो संस्करण उपलब्ध है- एक छोटा और दूसरा बड़ा। इस पर अनेक प्राचीन टीकाएँ भी उपलब्ध है। जिनमंें से एक प्राचीन टीका के साथ यह अन्नमलै विश्वविद्यालय में प्रकाशित हुआ है।
  9. आचार्य बलदेव उपाध्याय विरचित वैष्णव सम्प्रदायों का साहित्य और सिद्धान्त, पृ0 152
  10. आचार्य बलदेव उपाध्याय विरचित वैष्णव सम्प्रदायों का साहित्य और सिद्धान्त, पृ0 153
  11. आचार्य बलदेव उपाध्याय विरचित वैष्णव सम्प्रदायों का साहित्य और सिद्धान्त, पृ0 153-154
  12. मार्कण्डेय पुराण
  13. नालाभिरदिव्यप्रबन्धम्
  14. डाॅ0 एस0के0 आयप्रर विरचित वैष्णव सम्प्रदाय का इतिहास, पृ0 4-13
  15. वही, पृ0 33
  16. स्व. गोपीनाथ राव विरचित ‘सुब्रह्मण्यम् अय्यर व्याख्यानमाला-1923, पृ0 17
  17. कृतादिषु प्रजा राजन् कलाविच्छन्ति सम्भवम्। कलौ खलु भविष्यन्ति नारायणपरायणाः।।
  18. क्वचित्क्वचिन्महाराज द्रविडेषु च भूरिशः। ताम्रपर्णी नदी यत्र कृतमाला पस्विनी।।
  19. कावेरी च महापुण्या प्रतोची च महानदी। ये पिबन्ति जलं तासां मनुजा मनुजेश्वर।
  20. प्रायो भक्ता भगवति वासुदेवेऽमलाशयाः।।-श्रीमद्भागवतमहापुराण-11/5/38-40

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019
Date of Publication : 2019-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 195-202
Manuscript Number : SHISRRJ19333
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

भावना शुक्ला, "विशिष्टाद्वैतवेदान्त में आलवार परम्परा", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 1, pp.195-202, January-February.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ19333

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