Manuscript Number : SHISRRJ193337
प्राचीन भारतीय राजनीति में राजशास्त्र की भूमिका
Authors(1) :-डाॅ0 रविन्द्र कुमार प्राचीन भारतीय राजशास्त्र का उद्भव स्थल ऋग्वेद है। वैदिक सभ्यता के आरंभिक काल में ही प्राचीन आर्यों के राजनीतिक और प्रशासनिक संगठन के ढाँचे का विकास हो गया था। ऋग्वेद और उसके उत्तरवत्र्ती वैदिक रचनाओं के सामग्रियों के आधार पर यह कहना उपयुक्त प्रतीत होता है कि उस युग में विकसित राजनीति और प्रशासनिक संगठनों का विकास हो चुका था। वैदिक युग में सुदृढ़ लोक योगक्षेम अर्थात् प्रजाहितकारी प्रशासन की स्थापना हो चुकी थी। ऋग्वेद में विविध विषयों पर अनेक ऋषियों के विचार मुक्तक ऋचाओं में दिये हुए हैं। विषय की दृष्टि से इन ऋचाओं में परस्पर कोई संबंध नहीं है। प्रत्येक ऋचा स्वतंत्र और स्वयं में पूर्ण है। इसलिए ऋग्वेद में किसी भी विषय का क्रमबद्ध इतिहास प्राप्त नहीं किया जा सकता। राजशास्त्र विषयक ऋचाएँ, संपूर्ण ग्रंथ में यत्र-तत्र मुक्त छन्दों के रूप में बिखरी हुई हैं। इन ऋचाओं में भी राजशास्त्र का विषय का स्पष्ट वर्णन कहीं भी प्राप्त नहीं है। इन ऋचाओं की राजशास्त्र संबंधी सामग्री में कतिपय सिद्धांतों की ओर संकेत मात्र किय गये हैं। इन संकेतों के आधार पर प्राचीन भारतीय राजशास्त्र के स्पष्ट स्वरूप की स्थापना नहीं की जा सकती है जो अन्य तीन संहिताओं के विषय में भी यही कहना उचित होगा।
डाॅ0 रविन्द्र कुमार Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019 Article Preview
एम.ए., पीएच.डी. (राजनीति विज्ञान), बी. आर. ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर।
Date of Publication : 2019-01-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 336-338
Manuscript Number : SHISRRJ193337
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ193337