Manuscript Number : SHISRRJ19335
महाकवि माघ का वैदुष्य
Authors(1) :-डॉ. कुंदन कुमार महाकवि माघ का अविर्भाव सातवीं शताब्दी में हुआ था। कालिदास भट्टि और भारवि इनके पूर्ववर्ती एवं आदर्श कवि थे। अतः ‘शिशुपालवध्म्’ पर इन कवियों की शैली का प्रभाव प्रचुर रूप से देखा जाता है।राजशेखर काव्यमीमांसा में वाड्मय का शास्त्रा और काव्य दो रूपों में विभाजन कर इस दृष्टि से कवियों के तीन भेद करते हैंµ शास्त्राकवि, काव्यकवि और उभयकवि। इस प्रकार भट्टि शास्त्राकवि और कालिदास काव्यकवि हैं। परन्तु महाकवि माघ के काव्य में शास्त्राीय तत्त्वों एवं सि(ान्तों के वर्णन के साथ-साथ सहृद हृदयसंवेद्य कल्पनाजन्य सूक्ष्मातिसूक्ष्म रसपूर्णभावों का साम×जस्य प्राप्त होता है। अतः वे उभयकवि हैं। माघ के उफपर तत्कालीन युग की काव्य-प्रवृत्तियों का प्रभाव पूर्णतः परिलक्षित होता है। इनका शास्त्राभ्यास इतना अध्कि था कि पूर्ववर्ती कवियों द्वारा प्रभावित होते हुए भी वे शिशुपाल वध् में पाण्डित्य प्रदर्शन का लोभ संवरण नहीं कर पाये। इस सम्बन्ध् में डाॅ. भोला शंकर व्यास ने लिखा हैµ‘‘कालिदास मूलतः कवि हैं और भटिट कोरे वैयाकरण, किन्तु माघ स्वतन्त्रा रूप से पाण्डित्य एवं कवित्व को लेकर उपस्थित होते हैं।’’ ‘शिशुपालवध्म्’ के सूक्ष्मतया अनुशीलन से यह ज्ञात होता है कि उन्हें वेद, वेदान्त, उपनिषद्, ध्र्मशास्त्रा, मन्त्रा-तन्त्रा, पुराण, इतिहास, छन्द, ज्योतिष, कामशास्त्रा, आयुर्वेद, सघõीत, सामुद्रिकशास्त्रा, राजनीतिशास्त्रा, हयशास्त्रा, गजशास्त्रा, काव्यशास्त्रा, षड्दर्शन, बौ(-जैनदर्शन सहित विविध् क्षेत्रा के शास्त्रों का प्रचुर ज्ञान था। इस प्रकार ये सर्व-तन्त्रा-स्वतन्त्रा, पद-वाक्य-प्रमाणज्ञ, सकलविद्यानिष्णात आदि अनेक उपाध्यिों से से विभूषित किये जा सकते हैं। इनके इन्हीं गुणों को देखते हुए डाॅ. व्यास इन्हें ‘आल राउन्डर स्काॅलर’ मानते हैं। ‘शिशुपालवध्म्’ महाकवि माघ का ‘यशः शरीर’ माना जाता है। संभवतः इसी कारण शिशुपालवध्म् ‘माघकाव्य’ के नाम से प्रख्यात हो गया। माघ ने अपने युग तक विकसित समस्त साहित्यिक प्रवृत्तियों तथा विधओं का समावेश अपने काव्य में किया है। महाकाव्य के समस्त उत्कृष्ट गुणों से परिपूर्ण होने के कारण शिशुपालवध्म् एक श्रेष्ठ महाकाव्य के रूप में समादृत है। इस महाकाव्य में कालिदास का काव्यसौन्दर्य एवं अभिव्य×जना, भारवि का अर्थगौरव, दण्डि का पदलालित्य, भट्टि का शब्दशास्त्रानुराग विद्यमान है। कलापक्ष और भावपक्ष में सन्तुलन स्थापित करते हुए काव्य को सजाने-सँवारने की कला में माघ निष्णात हैं। महाकवि भारवि इनके पूर्ववर्ती एवं आदर्श कवि थे जिन्होंने ‘विचित्रा मार्ग’ का प्रवर्तन किया था जिसमें भावपक्ष की उपेक्षा करके कलापक्ष को बढ़ावा दिया गया। पाण्डित्यप्रदर्शन की इस प्रवृत्ति से माघ न बच सके। माघ में पाण्डित्य एवं वैदुष्य का अहंकार ही था जिसके कारण वे ‘किरातार्जुनीयम्’ की शैली, वृत्ति और शब्दावली का अनुशरण करते हुए ‘शिशुपालवध्म्’ की रचना की और भारवि से आगे निकल गये। उनका काव्य अपने युग में सर्वाध्कि पाण्डित्यपूर्ण और सर्वश्रेष्ठ घोषित हुआ जो आगे चलकर श्रीहर्ष के ‘नैषध्ीयचरितम्’ की रचना का प्रेरणास्रोत बना। अद्यापि सम्पूर्ण कविवुफल को कई शताब्दियों से चुनौती देता हुआ ‘बृहत्त्रायी’ अपने सिंहासन पर आरूढ़ है। आज तक ‘बृहत्त्रायी’ के अभिधन को कोई भी काव्यरचना खण्डित करने का साहस नहीं कर सका है। काव्यरचना में माघ के सर्वाघõीण उत्कर्ष को देखकर ही प्राचीन कवियों एवं आचार्यों ने उनकी मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की है। अपने वैशिष्ट्य के कारण अन्य कवियों की अपेक्षा माघ के सम्बन्ध् में प्रशस्तियाँ कुछ ज्यादा ही प्राप्त होती हैं।
डॉ. कुंदन कुमार Publication Details Published in : Volume 1 | Issue 4 | November-December 2018 Article Preview
टी.जी.टी. ‘संस्वृफत’ दिल्ली सरकार शैल कुटीर, लक्ष्मी विहार, बुराड़ी, दिल्ली,भारत
Date of Publication : 2018-11-30
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Page(s) : 80-90
Manuscript Number : SHISRRJ19335
Publisher : Shauryam Research Institute
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