Manuscript Number : SHISRRJ19339
आयुर्वेदीया ऋतुचर्या
Authors(1) :-डाॅ. मोनिका वर्मा ‘स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणमातुरस्य विकारप्रशमन॰च’ उक्त वचन आयुर्वेद के महत् प्रयोजन को स्फुट करता है कि स्वस्थ मनुष्य के स्वास्थ्यरक्षण और रोगों का प्रशमन यह आयुर्वेद का परमार्थ है इसलिये कहा गया - ‘आयुर्कामायमानेन आयुर्वेदोपदेशेषु विधेय. परमादरः।’
आयुर्वेद प्रकृतिसात्म्य की अनुपालना करने वाला ग्रन्थ है। आयुर्वेद के द्वारा प्रकृति का अनुगमन किया गया है, प्रकृतिप्रतिगमन का शास्त्र निषेध करता है। प्रकृति और मनुष्य इन दोनों की सहास्मिता इस शास्त्र में अनेकत्र ध्वनित हुई है। प्रकृति और मनुष्य के इसी सन्तुलन का निदर्शन चरकसंहिता सूत्रस्थान का ‘तस्याशीतीय अध्याय, सुश्रुतसंहिता का सूत्रस्थानीय ‘ऋतुचर्यमध्याय’ अष्टांगहृदय का ‘ऋतुचर्या’ नामक अध्याय है। उक्त स्थलों में स्पष्ट रूप से ऋतु के अनुसार दिनचर्या को व्यवस्थित किया गया है। इसके अतिरिक्त आयुर्वेदशास्त्र में प्रसंगानुकूल भी प्रकृतिसन्तुलन की स्थापना की गयी है।
डाॅ. मोनिका वर्मा Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019 Article Preview
सहायक आचार्य - मौलिक सिद्धान्त विभाग, डाॅ. एस.आर. राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जोधपुर,भारत
Date of Publication : 2019-03-30
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Page(s) : 183-191
Manuscript Number : SHISRRJ19339
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ19339