काव्यस्वरूपविमर्श

Authors(1) :-डाॅ० सूर्यकान्त त्रिपाठी

प्रत्येक आचार्य ने वैदिक चिन्तन सरणि को उपन्यस्त किया है। परवर्ती आचार्य पूर्ववर्ती आचार्य की संचेतना के आधार पर प्रतिपादन किया है। सभी आचार्यों ने वाक् को काव्य तथा लोकोत्तराहलाद को असाधारण धर्म के रूप में स्वीकार किया है।

Authors and Affiliations

डाॅ० सूर्यकान्त त्रिपाठी
सहायक आचार्य, संस्कृत विभाग, दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर,उत्तर प्रदेश, भारत।

संस्कृत, वाङ्मय, काव्य,स्वरूप, विमर्श, काव्यशास्त्र, कवि, आचार्य।

1. ऋग्वेद- 8.8.11, 5-39-5
2. काव्याधिकरणानुभूतिविमर्श प्रो० रहस बिहारी द्विवेदी पृ०1
3. काव्यालंकार- 1/1
4. काव्याधिकरणानुभूति विमर्श- पृ० 7
5. काव्यालंकार
6. काव्यालंकार 1/क
7. काव्यादर्श 1/1
8. काव्याधिकरणानुभूतिविमर्श पृष्ठ 13
9. ऋग्वेद - 1/64-45
10. वाक्यपदीय 1/1
11. ध्वन्यालोक 1/6
12. अमरकोष
13. काव्यालंकारसूत्र - प्रथम अध्याय
14. काव्यप्रकाश-मंगलाचरण
15. काव्यप्रकाश - सूत्र 1 (काव्य लक्षण)
16. रस गंगाधर (काव्य लक्षण)
17. वक्रोक्तिजीवितम्-1/7
18. वक्रोत्तिजीवितम् - 1/2
19. अभिनव काव्यालंकार सूत्र - 1-1-1
20. अभिराजयशोभूषणम् - (काव्यलक्षण)
21. काव्याधिकरणानुभूतिविमर्श
22. काव्याधिकरणानुभूतिविमर्श-3
23. काव्याधिकरणानुभूतिविमर्श -3 पृष्ठ 25
24. अभिनवभारती पृष्ठ 25

 

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 3 | May-June 2020
Date of Publication : 2020-06-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 34-40
Manuscript Number : SHISRRJ20328
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ० सूर्यकान्त त्रिपाठी, "काव्यस्वरूपविमर्श", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 3, Issue 3, pp.34-40, May-June.2020
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ20328

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