श्रीमद्भगवद्गीता में सगुणोपासना

Authors(1) :-सुभाष सिंह

भारतीय संस्कृति का प्रवाह सहस्रों वर्षों से वेद और उपनिषद् के काल से लेकर आज तक निरन्तर बहता चला हा रहा है जैसे हिमालय की गोद में गंगा निरन्तर समुद्र की ओर जाती है और मार्ग में असंख्य मानवों को लाभान्वित करती जाती है उसी प्रकार से हमारी धार्मिक धरोहर सहस्रों वर्षों से प्राणियों को प्रभावित करते हुए बहती आ रही है। वेद उपनिषद्, पुराण रामायण, महाभारत हमारे धर्म के प्रकाश स्तम्भ हैं जिनसे आज भी हमें प्रेरणा और शक्ति मिलती है। श्रुति और स्मृति के इस अद्भुत आकाश में सबसे उज्ज्वल नक्षत्र श्रीमद्भगवद्गीता है।

Authors and Affiliations

सुभाष सिंह
शोधच्छात्र संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज, भारत

श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण, महाभारत

  1. सर्वोपनिषदां गावों दोग्धा गोला नन्दनः
  2. अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा।।
  3. सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः। सर्वथा वर्तमानोऽपि से योगी मयि वर्तते।।
  4. सर्वस्य चाहं ह्दि सन्निविएटो, मन्तः स्मृतिज्र्ञानम पोहनं च। वैदैश्च सवैरहमेव वेद्यो वेदान्त कृद्वे, विदेन चाहम्।।
  5. बहुनां जन्मना मन्ते ज्ञानवान्यां प्रपधते। वासुदेवः सर्वमति स महात्मा सुदुर्लभः।
  6. ईश्वरोध्हमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी।
  7. मन्तः परतरं नान्यत्किभ्चिदस्ति धनंजय। मयि सर्वनिदं प्रोतं सूत्रो मणिगणा इव।।

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 1 | January-February 2020
Date of Publication : 2020-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 278-280
Manuscript Number : SHISRRJ2033123
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

सुभाष सिंह, "श्रीमद्भगवद्गीता में सगुणोपासना", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 3, Issue 1, pp.278-280, January-February.2020
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ2033123

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