विचारधारा, आधुनिक हिन्दी कविता और निराला का शिल्प-सौन्दर्य

Authors(1) :-प्रशांत कुमार

विचारधारा का यह दुर्भाग्य रहा है कि उसका प्रयोग नकारात्मक अर्थों में अधिक होता आया है । सन 1960 में डेनियल बेल की पुस्तक ‘दि एंड आफ आईडियालॉजी’ के साथ विचारधारा के अंत की घोषणा होती है । इसके साथ जब रोला बार्थ का ‘लेखक की मृत्यु‘ का सिद्धान्त जुड़ता है तो साहित्य से भी विचारधारा को खदेड़ने की माँग होने लगती है । मलार्मे का एक प्रसिद्ध कथन है- काव्य की रचना विचारों से नहीं शब्दों से होती है । इस उक्ति का उपयोग साहित्य में विचारों की प्रतिष्ठा के विरोध में किया जाता है । विचारधारा के विरोध में भी एक विचारधारा काम करती है जिसका कुछ न कुछ व्यक्तिगत, कला-संबंधी, वर्गीय या दलीय प्रयोजन होता है । ध्यातव्य है कि जिस समय यूरोप एवं अमेरिका में विचारधारा के अंत की घोषणा की जा रही थी, उस समय कविता मनुष्य से अपना संबंध-विच्छेद कर शाब्दिक जालों में उलझी हुई थी । ई0ई0 कंमिग्ज या सैण्डबर्ग उस समय कविता की विषय-वस्तु एवं मानवीय संबंधों को नजरअंदाज कर रहे थे । सैण्डबर्ग ने घोषणा की थी कि कविता काव्यात्मक विषयों की आकांक्षिणी नहीं होनी चाहिए और वह ‘स्टीम इंजन’ पर लिखी जानी चाहिए । कमिंग्ज शब्दों के अक्षरों को तोड़कर अर्थहीन या अर्थमुक्त उद्भावनाएं कविता के रूप में प्रस्तुत कर रहे थे । वस्तुतः विचारधारा को खारिज करने की वकालत साहित्य में मनुष्य की उपस्थिति को एक हद तक अप्रकाशित रखने और साहित्य में कलावाद को जीवित करने का एक प्रयास थी । हिन्दी कविता में विचारधारा के बरक्स कवितायें लिखी गई हैं । निराला की कवितायें अपने विचारधारा के बरक्स विशेष शिल्प कला के लिए भी रेखांकित की जाती रही हैं । इस शोध पत्र में निराला के शिल्प सौन्दर्य को केंद्र में रखकर उनके विचारधारात्मक सौन्दर्य को रेखांकित किया गया है ।

Authors and Affiliations

प्रशांत कुमार
शोधार्थी, भारतीय भाषा केंद्र, भाषा, साहित्य और संस्कृति अध्ययन केंद्र, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली

हिन्दी कविता, विचारधारा, निराला का साहित्य, भाषा, कविता का शिल्प पक्ष ।

  1. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, चितामणि, भाग- 3, साहित्य निबंध, पृ. 29
  2. रामविलास शर्मा, आस्था और सौंदर्य, पृ. 16
  3. नंद किशोर नवल, कसौटी- 3, 1999, (साहित्य का केन्द्र संवदेना या विचारधारा आलेख), पृ. 9
  4. मुद्राराक्षस, तद्भव, अप्रैल, 2000: (साहित्य में विचारधारा विरोध की पड़ताल), पृ. 42
  5. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, ‘चिन्तामणि’ भाग-2, (काव्य में रहस्यवाद निबंध), पृ. 42
  6. नामवर सिंह, आधुनिक हिन्दी सहित्य की प्रवृत्तियां: पृ. 39
  7. निराला, परिमल (भूमिका), पृ. 2
  8. रामस्वरूप चतुर्वेदी, ‘प्रसाद-निराला- अज्ञेय’ पृ. 50

Publication Details

Published in : Volume 5 | Issue 1 | January-February 2022
Date of Publication : 2022-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 112-118
Manuscript Number : SHISRRJ2033133
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

प्रशांत कुमार, "विचारधारा, आधुनिक हिन्दी कविता और निराला का शिल्प-सौन्दर्य ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 5, Issue 1, pp.112-118, January-February.2022
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ2033133

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