Manuscript Number : SHISRRJ2033320
भवानी प्रसाद मिश्र के गीतिकाव्य की भाषा
Authors(1) :-डाॅ. माया गोला भवानी प्रसाद मिश्र जी की भाषा गीतात्मकता के नव परिप्रेक्ष्य को आयाम देती है। स्वयं मिश्रजी का भी मानना है कि जब तक मेरी भाषा मुझे ही प्रभावित न करे तो वह पाठकों तक अपना असर नहीं पहुंचा सकती है। उनकी भाषा में आत्मीयता, अंतरंगता व स्पष्टता का पूर्णतः समावेश मिलता है। उनकी भाषा बोलचाल की भाषा है किन्तु उनके जीवन का स्पदंन भी ध्वनित होता है जो कि उनके गहरे और विशिष्ट अर्थ को भी निकालता है।
डाॅ. माया गोला भवानी प्रसाद मिश्र भाषा, गीतात्मकता, अंतरंगता, स्पष्टता, समावेश। Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 3 | May-June 2020 Article Preview
असिस्टेंट प्रोफेसर, ॠहदी विभाग, सोबन ॠसह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा, परिसर अल्मोड़ा, उत्तराखंड, भारत।
Date of Publication : 2020-06-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 192-196
Manuscript Number : SHISRRJ2033320
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ2033320