जीव-जगत् विमर्श: अरविन्द दर्शन के सन्दर्भ में

Authors(1) :-राहुल कुमार पाण्डेय

समकालीन भारतीय दर्शन के पुनरुत्थान का श्रेय जिन दार्शनिकों को है, उसमें श्री अरविन्द का विशिष्ट स्थान है। उन्होंने सिद्धान्त में तो वेदान्त दर्शन को स्वीकार किया ही है, पर व्यावहारिक स्तर भी व्यक्तिगत तथा राष्ट्रीय चेतना को उसके अनुरूप सक्रिय करने की चेष्टा की है। उनका विश्वास था कि मानवीय चेतना अतिप्राज्ञ की दिशा में सक्रिय होने के लिए पूर्वनियत है, वही उसकी भावी उपलब्धियों की दिशा भी है, इसलिए उस दिशा में सक्रिय होने के लिए मानव जाति को आह्वान देने का सतत प्रयास किया है।

Authors and Affiliations

राहुल कुमार पाण्डेय
पूर्व शोधच्छात्र, संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश, भारत

  1. श्री अरविन्द के पत्र, प्रथम भाग, अनुवादक: चन्द्रदीप त्रिपाठी, पृ0 78, श्री अरविन्द सोसायटी, पांडिचेरी, प्रथम, संस्करण 1974
  2. श्री अरविन्द के पत्र, प्रथम भाग, अनुवादक: चन्द्रदीप त्रिपाठी, पृ0 78, श्री अरविन्द सोसायटी, पांडिचेरी, प्रथम, संस्करण 1974
  3. श्री अरविन्द के पत्र, प्रथम भाग, पृ0 81
  4. कठोपनिषद् 1/3/3, 4
  5. कठोपनिषद् 2/3/17- तं स्वच्छरीरात् प्रवृहेन्मुंजी दिवेषी कां धैर्येण
  6. डाॅ0एस0सी0 भट्टाचार्य, श्री अरविन्द दर्शन, पृ0 43, जगबन्धु प्रकाशन, श्रीरामकृष्ण भवन, ज्ञानपुर, वाराणसी, प्रथम संस्करण 1973

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 1 | January-February 2020
Date of Publication : 2020-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 170-172
Manuscript Number : SHISRRJ203344
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

राहुल कुमार पाण्डेय, "जीव-जगत् विमर्श: अरविन्द दर्शन के सन्दर्भ में", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 3, Issue 1, pp.170-172, January-February.2020
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ203344

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