सल्तनतकालीन मिथिला की लोक संस्कृति

Authors(1) :-विजय कुमार मिश्रा

मैथिली में लोकगाथा शैली अति प्राचीनकाल से प्रचलित रही है। विभिन्न जाति के ऐतिहासिक व्यक्तित्व के संबंध में अधिक ओजस्वी शैली में रचित गेय लोक गाथाएँ आदिकाल से ही प्रचलित रही है। इसे लोक महाकाव्य भी कहा जा सकता है। नृत्य की यह शैली अत्यधिक लोकप्रिय और मनोहारिणी है। कल्पना की उड़ान, कथानक की छवि छटा, धीरोदात नायक का इन्द्रधनुषी चरित्र यह सब मिलकर एक अपूर्व वातावरण की सृष्टि करता है। चूड़ियों के साथ ही सुनाई देती तलवार की झंकार। युद्ध और रोमांस हाथ में हाथ मिलाकर चल रहे होते। इन नृत्यों में भक्ति, पे्रम और मनोरंजन का समावेश रहता है।

Authors and Affiliations

विजय कुमार मिश्रा
ग्राम-लदारी, पो0-समैला लालगंजए भाया-केवटी, जिला-दरभंगा, बिहार, भारत।

लोकगाथा, लोक संस्कृति, नृत्य, मनोरंजन

  1. झा, एस. के. एवं झा बी.दि. इकोनोमिक हेरिटेज आॅफ मिथिला पृ. -198
  2. राम ज. महेन्द्र रमण, मैथिली लोक महागाथा, कारिख पंजियार,
  3. श्रीष, मैथिली साहित्यिक इतिहास, पृ.-39
  4. मिथिला शोध संस्थान, शोध पत्रिका, मिथिला की लोक संस्कृति विषेषांक,पृ.-236 -38
  5. संगीत, लोक संगीत अंक, 1966, पृ.-12

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 4 | July-August 2020
Date of Publication : 2020-07-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 21-23
Manuscript Number : SHISRRJ203349
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

विजय कुमार मिश्रा, "सल्तनतकालीन मिथिला की लोक संस्कृति", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 3, Issue 4, pp.21-23, July-August.2020
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ203349

Article Preview